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________________ ( २३ ) यथा-तद विहु जुत्तामुत्ती जम्हा दीसइ अणुत्तरं विरियं । धम्म विसयंमि तासिं तहा तहा उज्जु मंतीणं ॥ किं बहुणा सिद्धमिणं लोए लोउत्तरे वि नारीणं । निय निय धम्मायरणं पुरिसेहिं तो विसेसेयं ।। सुहभाव सालिणीयो दाण दयासील संजमधरीअो । सुत्तस्स पमाणत्ता लहंति मुत्ति सुनारीश्रो । -जिस प्रकार जिन कारणों से स्त्रियों में धर्म के विषय में अपूर्व सामर्थ्य दिखाई देता है, उसमें निम्सन्देह वे मुक्ति पद प्राप्त करने को अधिकारिणी हैं। अधिक क्या कहा जाय, लोक लोकोत्तर दृष्टि से भी यह कथन सिद्ध है कि अपने अपने धर्म का आचरण करने वाले पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में शक्ति एवं उद्यम अधिक होता है। शुभभाववाली' दान, दया, शील एवं संयम को धारण करने वाली, सूत्रों को प्रमाण भून मानने वाली ऐसी उत्तम स्त्रियां मुक्ति प्राप्त करती हैं। इस प्रकार पुरुष को अपेक्षा स्त्रियों में धर्म के प्रति विशेष भाव रहता है। प्रश्नः-१६-सेवात संघयण वाला एवं जघन्यबल वाला जीव ऊर्ध्वगति तथा अधोगति में कहां तक उत्पन्न हो सकता है। उत्तर :-ऊँचे चार देव लोक तक तथा नीचे में द्वितीय नरक तक उत्पन्न होता है, क्योंकि ऐसे जीव के अल्पबली होने से शुभ एवं अशुभ परिणाम भी मन्द हो जाते हैं। बृहत्कल्प की टीका में उक्त कथन का पाठ इस प्रकार है Aho! Shrutgyanam
SR No.034210
Book TitlePrashnottar Sarddha Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamakalyanvijay, Vichakshanashreeji
PublisherPunya Suvarna Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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