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________________ श्री अर्हन्नमः मङ्गलाचरण श्री सर्वज्ञं नत्वा, स्मृत्वा, पञ्चम गणेशितुर्वाचः । प्रश्नोत्तरसार्द्धशतं, वक्ष्ये सिद्धान्तसम्बद्धम् ॥१॥ प्राचीनेषु प्रायः शतकादिषु सन्ति केऽपि ये नार्थाः । सद्यः स्वपरस्मृतये, संगृह्यन्तेऽत्र ते लेशात् ॥२॥ श्री सर्वज्ञ भगवान् को नमस्कार कर एवं पञ्चम गणधर श्री सुधर्मा स्वामो को वाणो का स्मरण करते हुए, सिद्धान्तों से सम्बन्ध रखने वाले “प्रश्नोत्तर सार्द्ध शतक" नामक ग्रन्थ की रचना करता हूँ। प्रायः समय सुन्दर उपाध्याय विरचित विशेष शतक, समाचारी शतक, विशेष संग्रह आदि अनेक प्राचीन ग्रन्थों में जिन अर्थों का संग्रह नहीं किया गया है, उनका संग्रह संक्षेप में इस उद्देश्य से किया गया है कि जिससे तत्काल हो वे सैद्धान्तिक विषय (अर्थ) अपने एवं अन्य व्यक्तियों की स्मृति में रहें। इस शुभ भावना से पाठक प्रवर श्री क्षमाकल्यारण जी महाराज ने मङ्गलाचरण पूर्वक ग्रन्थ रचना का कारण बतलाया है। Aho! Shrutgyanam
SR No.034210
Book TitlePrashnottar Sarddha Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamakalyanvijay, Vichakshanashreeji
PublisherPunya Suvarna Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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