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________________ (ख) प्रश्नोत्तर शैली से जन साधारण को बहुत लाभ हुआ है । बौद्धिक विकास के लिये प्रश्नों का उत्पन्न होना और उनके उत्तरों को प्राप्त करना बहुत ही प्रावश्यक एवं महत्वपूर्ण है । प्राचीन जैनागमों में से भगवती सूत्र में तो गणधर गौतम आदि ने भगवान महावीर से समय-समय पर अनेक प्रकार के प्रश्न किये और भगवान महावीर ने उन प्रश्नों का उत्तर देकर प्रश्नकर्ता के मन का समाधान किया। अर्थात् प्रश्नोत्तर शैली में ही भगवती सूत्र को रचना हुई है। इसी तरह और भी अनेक ग्रन्थों में इस शैली को अपनाया गया है । जहां तक संस्कृत में स्वतन्त्र प्रश्नोत्तर-ग्रन्थ के रचे जाने का सवाल है मेरी जानकारी में १२ वीं शती में नवांगी टीकाकार अभयदेवसूरि के शिष्य हरिश्चन्द्र गरिण ने 'प्रश्न-पद्धति' नामक ग्रन्थ बनाया है वही संस्कृत भाषा में सबसे पहला प्रश्नोत्तर-ग्रन्थ है । मूल ग्रन्थ पहले प्रकाशित हो चुका था। उसका गुजराती अनुवाद भी प्रा० विजयमहेन्द्रसूरि का किया हुआ अहमदाबाद से प्रकाशित हो चुका है। __उपरोक्त प्रश्न-पद्धति' में ६६ प्रश्नों के उत्तर हैं । इनमें से कई तो बहुत ही महत्वपूर्ण हैं । प्रश्न नं० ३० और ७० मांडुक के निवासी देवसी दोशी और चन्द्रावती के निवासी पोरवाड़ सागरचन्द्र नामक श्रावकों के पूछे हुये हैं । इस प्रश्नोत्तर-ग्रन्थ में गीतार्थ पद्धति नामक ग्रन्थ की ३ गाथायें उद्धत हैं, ग्रन्थ अभी तक कहीं देखने में नहीं आया है। प्रश्न नं० ७० के उत्तर में हरिश्चन्द्र गरण ने अपनी बनाई हुई "संसारदावा' स्तुति को टीका का उल्लेख किया है वह भी अब प्राप्त नहीं है। प्रश्न नं० २८ के उत्तर में 'वसुदेवहिन्डी' के वीरचरित्र अधिकार का उल्लेख है शायद वह भी अब अप्राप्त है। इस तरह प्रश्नोत्तर ग्रन्थों में कई अलभ्य ग्रन्थों के उल्लेख व उद्धरण प्राप्त हो जाते हैं । Aho! Shrutgyanam
SR No.034210
Book TitlePrashnottar Sarddha Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamakalyanvijay, Vichakshanashreeji
PublisherPunya Suvarna Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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