SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपाध्याय क्षमाकल्याणजी के सम्बन्ध में अष्टक और एक परलोकगतानां गुरुणां स्तवः नामक रचना हमारे ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में प्रकाशित हो चुकी है । इनके अतिरिक्त कुछ फुटकर पद्य भी मिले हैं जिन्हें नीचे दे दिया जा रहा है । अथान्य पंडित कृत गुरुजी महाराज के काव्य क्षमाकल्याणार्हाः प्रवरगुणवंतश्शमधरास्सदाचारा धारास्सकलशुभ राव वृततु च ॥ वरोपाध्यायास्सज्जिनवचनपूतास्यकमला । विरागार्हाः पूज्याः कुमतिमतमेघौघपवनाः ॥१॥ श्रीपूज्यपादकमलाय भुवि क्षमादिः । कल्याणनामललिताय सुवंदनालिः ।। छंदो विधायि मथुरेश कृतार्थवेत्रे । स्तात्त जनप्रियकराय नृपाच्चिताय ।।१।। (वैदेशिक-द्विज-कवि मथुरानाथ-कृतं पद्यमिदम्-) वानी मैं अमृत श्रवै, मत खंचन करे और । देखे क्षमाकल्याण जू, सब पंडित सिर मौर ॥१॥ (नागोर वास्तव्य भंडारी फतेहचन्दजी कृत दोहा।) शिष्य परम्परा बीकानेर के बृहद् ज्ञान भण्डार में आपके गुरु और शिष्य परम्परा की विस्तृत नामावली वाला पत्र प्राप्त है। उससे यह ज्ञात होता है कि क्षमाकल्याणजी के ४ शिष्य थे। (१) केसरीचन्द Aho! Shrutgyanam
SR No.034210
Book TitlePrashnottar Sarddha Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamakalyanvijay, Vichakshanashreeji
PublisherPunya Suvarna Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy