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________________ निगोद में ही गति-प्रागति करते उत्कर्ष से कितने काल तक उसमें रहते है ? कभी सूक्ष्म निगोद में एवं कभी बादर निगोद में जाते हुए जीव उत्कर्ष से कितने काल तक रहते हैं। इसी प्रकार सूक्ष्म बादर साधारण एव प्रत्येक रूपी वनस्पति काय मात्र में उत्कर्ष से जीव कितने काल तक रहते है ? उत्तर-(१) व्यवहार राशि में आये हुए जीव यदि सूक्ष्म निगोद में जावे तो उत्कर्ष से असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी तक उसमें रहते हैं। (२) बादर निगोद में उत्कर्ष से ७० कोटा कोटि सागरोपम तक रहते है, इससे अधिक नहीं। (६) सामान्य निगोद में ढाई पूगल परावर्त काल तक ___ अर्थात् अनन्त काल तक रहते हैं। ... वनस्पति काय मात्र में असंख्यात पुदगल परावर्त काल तक रहते हैं एवं बे पुद्गल परावर्त प्रावलिकाके असंख्यातवे भाग में जितने समय है उतने समय तक मानना चाहिये । यह सारी स्थिति व्यवहार हाशि में आये हुए जीवों को प्राश्रित कर कही है। जिससे मरदेवी आदि अधि. कारों में दोष नहीं पाता । आगम में कहा है कि 'सहम निगोए गं भंते, सुहम निगोए ति कालयों किय चिरं होइ, गोयमा जहएणणं अन्तो मुहुतं उक्कोसेणं असंखेज्ज कालं, असंखिज्जायो उस्सप्पिणि प्रोसप्पिणीओ।" Aho! Shrutgyanam
SR No.034210
Book TitlePrashnottar Sarddha Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamakalyanvijay, Vichakshanashreeji
PublisherPunya Suvarna Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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