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________________ ( १८७ ) प्रश्न १३६-विजय वैजयन्त, जयन्त एवं अपराजित इन चारों विमानों में उत्पन्न जीव वहां से च्यवकर (गिरकर) मनुष्य भव को प्राप्त करके (मरने के बाद) नैरयिक, भवनपति, तिर्यक्, व्यन्तर, एवं ज्योतिषी देवों में उत्पन्न होते हैं या नहीं ? उत्तर - विजयादिक विमानों से प्रवतरित होकर मनुष्य भव समाप्त करने के बाद जीव ऊपर बताये हुए स्थानों में तो नहीं जाते हैं, परन्तु सौधर्मादि देवलोकों में जाते हैं। ऐसा श्री प्रज्ञापना सूत्र वृत्ति के पन्द्रहवें इन्द्रिय पद में कहा है:यथाः-इह विजयादिषु चतुर्यु विमानेषु गतो जीवो नियमात् तत उदवृत्तो न जातु कदाचिदपि नैरायिकादिषु पञ्चेन्द्रिय तिर्यक पर्यवसानेषु तथा व्यन्तर ज्योतिष्केषु च मध्ये समागमिष्यति, मनुष्येषु सौधर्मादिषु चागामेप्यतीति ।" इसका अर्थ उत्तर में दे दिया गया है। प्रश्न १४० - भरत चक्रवर्ती का जीव निगोद आदि में से निकल कर कितने भवों में मोक्ष को गया तथा सम्यकत्व प्राप्त कर जो कभी भी वमन नहीं करता है, अर्थात् जिसका कभी पतन नहीं होता है। वह कितने भवों में मोक्ष को प्राप्त होता है ? उत्तर - भरत चक्रवर्ती का जीव सात आठ भव करके मुक्ति को प्राप्त हुआ है, ऐसा सम्भव है। Aho! Shrutgyanam
SR No.034210
Book TitlePrashnottar Sarddha Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamakalyanvijay, Vichakshanashreeji
PublisherPunya Suvarna Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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