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________________ ( १२८ ) पश्चात् उपाश्रम या देशभर में आकर हीयमाना स्तुति बोलना चाहिये । इसके पूर्व परिष्ठापक करने वाला जहाँ तक पुनः न वे वहाँ तक वसतिपाल वसति का प्रमार्जन आदि समस्त कार्य करे । इस सम्बन्ध में चूर्णिका विशेष पाठ इस प्रकार है " ततो गम्म चेइयघरं गच्छति चेइयाणि वंदित्ता, संति निमित्त अजियसंति त्थवो परिकट्टिज्जइ तिन्नि थुईओ परिहार्यतीय कडिजंति तय आगंतु अविहिपरिद्वावणि या काउसो कीरड त्ति ।।" - - वहाँ से आकर देरासर में जावे और चैत्यवन्दन कर शान्ति के लिये अजितशान्ति स्तव बोले तथा 'परिहायंती' तीन स्तुति करे । इसके पश्चात् आकर "अवधि - परिद्वावणियाए" का काऊसग्ग करे | इस प्रकार व्यवहार दृष्टि से मृतक की गति जाननी चाहिये । "थलकरणे वेमाणि जोइसिमोवारण मंतरो समम्मि | गड्डाइ भवणवासी एस गती से समासे ॥" जब मृतक के शरीर को ऊंचे स्थल पर रखे व शिविका ( पालखी ) में पारिष्ठापित्त करे तो उस समय वह वैमानिक हो गया है, ऐसा मानना चाहिये । समभूमि पर हो, तो ज्योतिष्क अथवा व्यन्तर में वह उत्पन्न हुआ है, ऐसा जानना । गर्त ( गड्डे ) में स्थापित किया हो तो भवनवासियों में गया है ऐसा जानना चाहिए । मृतक की इस प्रकार की गति का विवेचन संक्षेप में यहां किया गया है । Aho ! Shrutgyanam
SR No.034210
Book TitlePrashnottar Sarddha Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamakalyanvijay, Vichakshanashreeji
PublisherPunya Suvarna Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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