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________________ ( ११० ) २. विवाद ३. धर्मवाद । इनके लक्षण उत्तराध्ययन सूत्र के १६ अध्याय की टीका में इस प्रकार कहे हैं: शुष्कवादो विवादश्च धर्मवादस्तथापरः । राजन्नेष त्रिधा वादः कीर्त्तितः परमर्षिभिः ॥ १ ॥ अत्यन्त मानिना सार्धं, क्ररचित्त ेन वा दृढं । धर्मद्विष्टेन मूढेन, शुष्कवादः प्रकीर्त्तितः ॥ २ ॥ विजयेऽस्यातिपातादि, लाघवं तत्पराजयात् । धर्मस्येति द्विधाप्येषः तच्चतोऽनर्थवर्धनः ||३|| लब्धिख्यात्यार्थिना तु स्यात्, दुःस्थितेनाऽमहात्मना । छलजातिप्रधानो यः स विवाद इति स्मृतः ॥ ४ ॥ विजयो यत्र सन्नीन्या दुर्लभस्तत्ववादिनः । तद्भावे ऽप्यन्तरायादि दोषो ऽदृष्ट विद्यातकृत् ||५|| परलोक प्रधानेन मध्यस्थेन तु धीमता । स्वशास्त्र ज्ञात तत्त्वेन धर्मवाद उदाहृतः || ६ || विजये ऽस्य फलं धर्म प्रतिपच्या द्यनिन्दितम् । आत्मनो मोहनाशश्च नियमात् तत्पराजयात् ॥ ७ ॥ - महर्षि ने वाद के तीन भेद कहे हैं - शुष्कवाद, विवाद एवं धर्मवाद । अत्यन्त अभिमानी, दुष्टचित्त एवं धर्मं द्वेषी मूढ़ के साथ किया हुआ वाद शुष्कवाद होता हैं । शुष्कवाद में विजय मिलने से धर्म की हानि एवं पराजय से धर्म की लघता Aho ! Shrutgyanam
SR No.034210
Book TitlePrashnottar Sarddha Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamakalyanvijay, Vichakshanashreeji
PublisherPunya Suvarna Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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