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________________ ( १०७ ) भावना चारित्र्य पालन से गिर जाती है और वे दीक्षावस्था को भी छोड़ देते हैं । में इसी प्रकार उक्त कृत्य करने से पात्र दुर्गन्ध भी प्राती है एवं भिक्षा के लिये पात्र आगे करने पर दुर्गन्धि वश लोग निन्दा करते हुए कहते हैं कि इन साधुयोंने हड्डियों की माला पहिनने वाले कापालिकों को भी जीत लिया है, जिससे कि ये मात्रा से पात्र धोते हैं । इस प्रकार श्रावकों की भी भावना बदल जाती है । इसके अतिरिक्त आचारांगादि में जो मोक प्रतिमा सुनी जाती है वह तो मात्र अभिग्रह रूप ही हं, प्रवाह रूप नहीं । प्रतः उक्त उल्लेख से किसी प्रकार का विरोध नहीं होता । प्रश्न ८ः - बृद्ध साधु छोटे साधुयों को तथा साधु साध्वियों को एवं पार्श्वस्थ आदि को वन्दन करे कि नहीं ? उत्तर- उत्सर्ग से तो वृद्ध साधु लघु साधु को तथा साध्वियों को एवं पार्श्वस्थ आदि को वन्दन नहीं करे परन्तु अपवाद से वन्दन करना भी उचित है । ऐसा श्री वृहत्कल्प भाष्य में कहा है । संक्षेप में वह पाठ इस प्रकार है । " तो इत्यादि" साधु वेश में रहे हुए हों तो वन्दन को प्राश्रित कर भजना होती है । भजना कैसे होती है ? इसका समाधान इस प्रकार ह कि " श्रमिति" जो दीक्षा पर्याय में छोटा हो उसको भी प्रायश्चित आदि कार्य के निमित्त वन्दन करना चाहिये । बाद में दूसरे समय न करे । साध्वियों को भी उत्सर्ग से वन्दन नहीं करना चाहिये अपवाद से तो यदि कोई बहुश्रुत महत्तरा पूर्व । Aho! Shrutgyanam
SR No.034210
Book TitlePrashnottar Sarddha Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamakalyanvijay, Vichakshanashreeji
PublisherPunya Suvarna Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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