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________________ पर जब अजितनाथ भगवान् उत्पन्न हुये तब उनके शासनकाल में सगर चक्रवर्ती के पुत्र जह्न कुमार ने दण्डरत्न से अष्टापद पर्वत के पाठ सोपान बनवाये। ऐसा उत्तराध्ययन वृत्ति में कहा है, यथाःइति श्रुत्वाऽथ दण्डेन, पातयित्वास्य भूभृतः नितम्ब दन्त शृङ्गाद्यम् अष्टसोपानताकृताः ॥१॥ - इस प्रकार सुनकर दण्डरत्न से इस पर्वत के पास-पास के तीरा शिखरों को गिराकर पाठ सोपान बनाये । यह प्रकरण द्वितीय चक्राधिकार में है। श्रो लोक प्रकाश में तो भरताधिकार में इस प्रकार कहा है:संतक्ष्य दण्डरत्नेन परितो ऽष्टापदं गिरिम् । अष्टो योजनमानास्तन्मेखलाः स व्यरीरचत् ॥२॥ ---- अष्टापद पर्वत दण्डरत्न से चारों ओर से छीलकर उसने पाठ योजना के प्रमाण वाली गोल मेखलाएं बनाई । इस आधार पर भरत ने ही वे सोपान बनाये ऐसा सिद्ध होता है। शत्र जय माहात्म्य के आठवें सर्ग में:अष्टाभिः पदिकाभिस्ते, तमारुह्याति हर्षितः । प्रासादान् जगदीशस्य, त्रिः प्रदक्षिणयन् क्षणात् - वे पाठ सोपानों से हर्षपूर्वक ऊपर चढ़कर जिनेश्वर के प्रासादों की तीन प्रदक्षिणा देते थे। इतना ही कहा है। Aho! Shrutgyanam
SR No.034210
Book TitlePrashnottar Sarddha Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamakalyanvijay, Vichakshanashreeji
PublisherPunya Suvarna Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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