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________________ ( ६४ ) -सम्पूर्ण काल में सम्पूर्ण कर्म भूमि पर सभी सर्वज्ञ, सबके गुरु, सबसे पूजित, समस्त मेरु पर्वतों से अभिषिक्त समस्त लब्धियों से युक्त, समस्त परिषहों को जीत कर सभी तीर्थ कर पादोपगम अनशन करके सिद्ध हुए हैं। शेष तीनों कालों के समस्त साधुओं में से कुछ साधु पादोपगम अनशन एवं कुछ अनशन पूर्वक इगिनी मरण की मृत्यु को प्राप्त करते हैं। समस्त साध्वियों एवं प्रथम संघयण वालों को छोड़कर समस्त देशविरतियुक्त श्रावक अनशन पूर्वक मरण प्राप्त करते हैं। इसी प्रकार इस चौबीसी में श्री ऋषभदेव स्वामी, श्री नेमि नाथ स्वामी एवं श्री महावीर स्वामी ये तीनों तीर्थ कर पर्यङ्कासन से स्थित हो मुक्ति को प्राप्त हुए हैं। शेष तीर्थ कर कायोत्सर्ग में रहकर मुक्त हुए हैं। ऐसा सप्ततिशत स्थानक में कहा है । यथा:यथा-वीरोसह नेमीणं पलिअंकं सेसयाण उसग्गो । पलियंकारुण माणं सदेहमाणा तिभागूणं ति ॥ -ऋषभदेव, वीर प्रभु एवं नेमीनाथ ये तीनों तीर्थकर पर्यङ्कासन से सिद्ध हुए हैं. शेष तीर्थंकर काउस्सर्ग ध्यान में रहकर सिद्ध हुए हैं। पर्यङ्कासन का प्रमाण अपने शरीर के तृतीय भाग जितना न्यून जानना चाहिये । शंका-श्री वीर भगवान् देशना देते हुए ही सिद्ध हुए हैं तो उनके लिये पादोपगमन अनशन कैसे संगत हो सकता है ? समाधान-भगवान पादोपगमन अंगीकर कर समस्त अंगों एवं उपांगों को निश्चल करते हुए चारों आहारों का त्याग कर सोलह प्रहरतक अस्खलित देशना देते हुए सिद्ध हुए हैं। इसलिये Aho! Shrutgyanam
SR No.034210
Book TitlePrashnottar Sarddha Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamakalyanvijay, Vichakshanashreeji
PublisherPunya Suvarna Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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