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________________ ८३ जैन-पुरातत्त्व दाह-स्थानपर शिष्यों द्वारा स्तूप भी बनवाया गया था। यह स्तूप अाज भी गुलजारबाग़ स्टेशनके पिछले भागमें है । जहाँपर इस स्तूपको निर्माण किया गया है, वह भूमि कुछ ऊपरको उठी हुई है । इस स्थानको वहाँ के लोग कमलदह कहते हैं । वस्तुतः इसका मूल नाम कमलहद जान पड़ता है । पटनामें यही एक ऐसा जलाशय है, जिसमें कमल उत्पन्न होते हैं । मिथिलाके सुप्रसिद्ध कवि विद्यापतिको यह स्थान अत्यन्त प्रिय था । उन्होंने अपने साहित्यमें भी इसका उल्लेख किया है, ऐसा कहा जाता है। आज भी सरोवरका अवशेष जो बच गया है, उसमें भी कमल होते हैं । पुरातन पाटलिपुत्रकी स्मृतिको सुरक्षित रखनेवाले अगमकुवाँ व पुरातन खुदाई में निकले खण्डहर समीप ही पड़ते हैं । भगवान् बुद्धके पाटलिपुत्र आवागमनपर उनके तात्कालिक निवास स्थानके विषयमें जो उल्लेख आता है, उसमें आम्रवनकी चर्चा है, जहाँ मगध निवासियोंने बुद्धदेवका रायण-खिरनीके द्वारा स्वागत किया था। यह सब लिखनेका एक मात्र कारण यह है कि स्थूलभद्रकी समाधि इन सब स्थानोंके इतनी समीप पड़ती है कि उन दिनों यह स्थान नगरका अन्तिम भाग था। सांस्कृतिक दृष्टि से इस समाधि-स्थानका विशेष महत्त्व है। जैनोंके उभय सम्प्रदाय मान्य स्मारकोंमें इसकी गणना होती है । अब हमें देखना यह है कि स्तूपका प्राचीनत्व हमें किस शताब्दी तक ले जाता है। सुप्रसिद्ध चीनी यात्री श्यूआन्-चुआं ने जिसे विज्ञोंने यात्रियोंका राजा कहा है, अपने यात्रा-विवरणमें स्थूलभद्र के उपर्युक्त स्मारकका उल्लेख किया है । उसने इस स्थानको पाखण्डियोंका स्थान कहा है, जो स्वाभाविक है; क्योंकि उन दिनों धार्मिक असहिष्णुता बढ़ी हुई थी। 'निवास-स्थान से यह भी ध्वनित होता है कि उस समय यह स्थान आजकी अपेक्षा बहुत ही विस्तृत रहा होगा, एवं जैन मुनि-गणके लिए निवासकी भी समुचित व्यवस्था रही होगी; क्योंकि ४० वर्ष पूर्व यह समाधि-स्थान कई एकड़ भूमिको सम्बद्ध किये हुए था, पर जैनोंकी उदासीनताके कारण आज कुछ Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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