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________________ - ४० - सिंहजी व्यौहार, (जबलपुर) सुप्रसिद्ध विद्वान् बाबू कामताप्रसादजी जैन, (अलीगंज), पं० श्री नेमिचन्दजी ज्योतिषाचार्य (बारा), बाबू दीपचन्दजी न हटा (कलकत्ता) और बाबू घेवरचन्दजी जैनसे प्राप्त हुए हैं । तदर्थ मैं उनका हृदयसे आभार मानता हूँ। प्रान्तमें मैं प्रान्तीय राज्य-शासन व विद्वानोंसे विनम्र निवेदन करना चाहता हूँ कि वे प्रान्तीय कलात्मक सम्पत्तिकी रक्षाके लिए तत्पर हों और अपने-अपने भू-भाग स्थित प्राचीन ऐतिहासिक अवशेषादि साधनोंपर विवेचनात्मक प्रकाश डालकर एतद्विषयक विद्वानोंका ध्यान आकृष्ट करें। खण्डहरोंका वैभव पुरातत्त्व विषयक शोधमें अांशिक सहायक हो सका और पुरातत्त्वके उपेक्षित-अरक्षित अवशेषोंके प्रति जनरुचि उत्पन्न करा सका तो मैं अपना प्रयत्न सफल समझूगा। ता० १३-५-१६५३ मोद-स्थानक मारवाड़ी रॉड भोपाल मुनि कान्तिसागर Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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