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________________ खण्डहरोंका वैभव महाकविने अपने 'सौंदर्यबोध' नामक अनुभवपूर्ण निबन्धमें बार-बार यह सिद्ध करनेकी चेष्टा की है कि “सौंदर्यका पूर्ण मात्रामें भोग करनेके लिए संयमकी आवश्यकता है।" "अन्ततः सौंदर्य मनुष्यको संयमको ओर ले जाता है ।" "सुखार्थी संयतो भवेत्”–अर्थात् यदि इच्छाको चरितार्थता चाहते हो तो इच्छाको संयममें रखो । यदि तुम सौंदर्यका उपभोग करना चाहते हो तो भोग लालसाको दमन करके शुद्ध और शान्त हो जाओ।” सौंदर्यबोधके लिए चित्तवृत्तिका स्थैर्य अपेक्षित है । साथ-ही-साथ संयम और नियम भी जीवनमें ओत-प्रोत होने चाहिए । यों भी बिना संयम और नियमका मानव पशु-तुल्य है, जब इतने गहन विषयकी उपासना करना है तब तो जीवन विशेषतः विशुद्ध होना चाहिए । सौंदर्यसृष्टि असंयत कल्पना-द्वारा संभव नहीं। स्वार्थप्रेरित भावना मानवको वास्तवके मार्गसे गिरा देती है। - श्रमण-संस्कृतिमें संयम-नियम अत्यन्त आवश्यक है। इन्हींपर मानव जातिका विकास आधृत है । श्रमणोंने अपने जीवनका रूप ही वैसा रखा है इसलिए कि पद-पदपर उन्हें सौंदर्य बोध होता है । तद्द्वारा प्राप्त आनन्दको वे जनतामें प्रसारित कर सच्चे सौन्दर्यके निकट पहुँचाते है। श्रमण-संस्कृति द्वारा किये पिछले सभी प्रयत्न इसके गवाह हैं। परम वीतराग परमात्माने जीवनकी कठोरतम साधना द्वारा आत्मस्थ सौंदर्यका दर्शन किया था। इस अनुभूत परम्पराके सिद्धान्तोंपर चलनेवाली श्रमण-संस्कृतिने आजतक आंशिक रूपसे इस अनुभूतिको संभाल रखा है। परन्तु दुर्भाग्यकी बात है कि आजका अनुयायीवर्ग इस परम्पराको तेजीके साथ विस्मृत कर रहा है। न तो सौंदर्य भावनाको जागृत करनेकी चेष्टा रह गई है और न वैसा कोई प्रयत्न ही दृष्टिगत होता है । कलाविहीन जीवन किसी भी अपेक्षा श्रेयस्कर नहीं । व्यापारप्रधान जीवन, मानव मानवके प्रति रहनेवाली स्वाभाविक सहानुभूतितकको भुला देता है। वह व्यक्ति, व्यक्ति होकर जीवित रहता है। समाज नहीं बन सकता। स्वार्थको प्रबलता उसे अन्ततः पशु बनाकर छोड़ती है। Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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