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________________ महाकोसलकी कतिपय हिन्दू-मूर्तियाँ ४०७ है । इसे भी मैं महाकोसलकी नारीमूर्तियोंमें सर्वोत्कृष्ट मानता हूँ। बड़े हो परितापपूर्वक सूचित करना पड़ रहा है कि इस मूर्तिको सुरक्षाका कुछ भी समुचित प्रबन्ध नहीं है। मूर्ति है तो तारादेवीकी परन्तु विस्तृत पूर्णालंकार के कारण जनता इसे मालादेवी कहकर पुकारती है। इस प्रकार नरसिंहपुर, सागर, विलहरी तथा पनागरमें अत्यन्त उत्कृष्ट नारीमूर्तियाँ, अपनेसे भिन्न स्वरूपमें मानी जाती हैं, इनमें जैनोंकी अम्बिका तथा चक्रेश्वरी भी सम्मिलित हैं। परिचारिकाएँ—यों तो परिचारिकाएँ वास्तुकलासे सम्बन्धित हैं। परिचारक एवं परिचारिकाओंकी मूर्तियाँ प्रधानतः परिकरमें ही पाई जाती हैं, स्वतंत्र बहुत कम, यदि स्वतंत्र मिलती भी हैं तो उनका सम्बन्ध मन्दिरके मुख्य द्वारसे ही रहता है। मुझे कुछ परिचारिकाओंकी स्वतंत्र मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं, इसलिए मैंने इसका समावेश मूर्तिकलामें कर लिया, सम्भव है ये मंदिरोंके स्तम्भोंसे हो, पूर्व कालमें सम्बद्ध रही होंगो। कारण कि एक दूसरे पत्थरको जोड़नेवाले चिह्न एवं स्तम्भाकृतियाँ बनी हुई हैं। यों तो अन्वेषण करनेपर ऐसी दर्जनों कृतियाँ मिल सकती हैं । मुख्यतः द्विभुजी परिचारिकाओंके हाथोंमें चँवर या पुष्प-मालाएँ रहती हैं। कहींकहीं अंजलिबद्ध मुद्राएँ भी देखी गई हैं किन्तु यह अपवाद है। स्तम्भोंपर खुदी हुई नारीमूर्तियाँ कुछ ऐसी भी पाई गई हैं जिनमें भारतीय नारीजीवनकी सांसारिक वृत्तियाँ सफलतापूर्वक दृष्टिगोचर होती हैं। इनमेंसे कुछेक तो इतनी सुन्दर एवं भावपूर्ण हैं मानो वह स्थितिशील कविता ही हों। नारीजीवनमें भावोंका क्या स्थान है, इसका उत्तर इस प्रकारकी मूर्तियाँ ही दे सकती हैं। मेरे द्वारा संग्रहीत सामग्रीमें अधिकतर भाग खंडित प्रतिमाओंका है। परन्तु इन खंडित नारी-मूर्तियोंमें महाकोसलके नारी-जीवनके बहुतसे नारी-सुलभ व्यापक भावनाओंका ज्वलन्त चित्रण पाया जाता है। तत्कालीन सामाजिक जीवन एवं पारस्परिक लोकसंस्कृति, नैतिकता आदि अनेक Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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