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________________ ४०२ खण्डहरोंका वैभव संग्रहमें है। ऐसी प्रतिमा रीवांके राजमहलमें भी है। प्रसंगतः एक बातको स्पष्ट कर देना आवश्यक जान पड़ता है कि पार्श्व यक्षका मुख्य स्वरूप गणेशसे मिलता-जुलता है। मूल रहस्यको बिना समझे आलोचक पार्श्व यक्षको भी गणेशकी कोटिमें बैठा देता है। ऐसी भद्दी भूलें हुई हैं। कुबेर ___ भारतवर्ष में कुबेर धनका अधिष्ठाता माना जाता है और उनकी पत्नी हारीती प्रसवकी अधिष्ठात्री । महाकोसलमें भी कुबेरकी मान्यता प्रचलित थी। अद्यावधि कुबेरकी ३ प्रतिमाएँ मुझे प्राप्त हुई हैं। एक आसवपायी कुबेर भी हैं, जो मद्यपानकी मस्ती सहित उत्कीर्णित हैं। दोनों ओर नारियाँ खड़ी हैं। अन्य दो प्रतिमाएँ सामान्य हैं। तीनों मूर्तियाँ श्याम वर्णके पाषाणपर खुदी हुई हैं। नवग्रह-नवग्रहके पट्टक पनागर एवं त्रिपुरीमें प्राप्त हुए हैं। पट्टकमें नवग्रहकी खड़ी मूर्तियाँ अंकित हैं । सभीका दाहिना हाथ अभयमुद्रामें एवं इसका शास्त्रीय रूप इस प्रकार है । श्यामवर्ण तथा शक्तिं धारयन्तं दिगम्बरम् । उत्सङ्गे विहितां देवी सर्वाभरणभूषिताम् ॥ दिगम्बरां सुवदनां भुजद्वयसमन्विताम् । विघ्नेश्वरीतिविख्यातां सर्वावयवसुन्दरीम् ॥ पाशहस्तां तथा गुह्यं दक्षिणेन करेण तु । स्पृशन्ती देवमप्येवं चिन्तयेन्मन्त्रनायकम् ॥ (उत्तरकामिकागमे पञ्चचत्वारिंशत्तम पटल) यह अवतरण मुझे श्री हनुमानप्रसादजी पोद्दार, (योरखपुर)से प्राप्त हुआ है। देखिये पृ० १०८-६। Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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