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________________ ४०० खण्डहरोंका वैभव हैं। नन्दी निम्न भागमें अपना बायाँ अगला पैर ज़मीनपर टिकाये एवं दूसरा मोड़े हुए बैठा है। मुख शिवकी ओर किये है। थुथनीका प्रदेश आवश्यकतासे अधिक फूला हुआ है। इसमें उनका आवेश परिलक्षित होता है। तने हुए कान इसकी पुष्टि करते हैं। पार्वतीके मस्तकपर मुकुट है। केशोंका जूड़ा ऊपरकी ओर अर्ध-गोलाकार बचा है। ___मूर्तिका परिकर कलाको दृष्टिसे अत्यन्त सुन्दर एवं नवीन कलात्मक उपकरणोंसे विभूषित है । संगीतकी आन्तरिक भावनाओंका प्रभाव भी स्पष्ट है, क्योंकि निम्न भागमें पाँच आकृतियाँ खींची गई हैं। मुखमुद्रा भक्ति-सिक्त हृदयको भावनाको साकार किये हुए है। मध्यवर्ती आकृति विशिष्ट व्यक्तित्वका बोध करती है। इनके मस्तकपर किरीट-मुकुट शोभायमान हो रहा है। चरण इतस्ततः फैलाये, हाथमें वीणा लिये हुए हैं। दाहिना हाथ वीणाके निम्न भाग एवं बायें हाथकी अंगुलियाँ तन्तुओंपर फिरती हुई चाञ्चल्य प्रदर्शन कर रही हैं। बादकके मुखपर तल्लीनता जनित एक-रसताका भाव व्यक्त हो रहा है। मालूम पड़ता है भावविभोर व्यक्तिने अपने आपको क्षणभर के लिए खो दिया हो । अतिरिक्त आकृतियाँ शंख और झाँझ बजा रही हैं। परिकरकी ये विशिष्ट आकृतियाँ न केवल कलाकी एवं भावोंकी दृष्टिसे ही महत्त्वपूर्ण हैं, अपितु तत्कालीन जनजीवनमें विकसित संगीतकलाका भी प्रदर्शन कराती हैं। यों तो शिवजीकी विभिन्न नृत्य-मुद्राओंपर प्रकाश डालनेवाली शिल्प सामग्री महाकोसलमें उपलब्ध हुई हैं। परिकरान्तर्गत संगीत उपकरणयुक्त आकृतियाँ इस प्रथम ही प्रतिमामें दृष्टिगोचर हुई हैं और एक शिल्प मुझे बिलहरोसे प्राप्त हुआ था, जो इसी निबंधमें आगे दिया जा रहा है । भारतीय संगीतकी अविच्छिन्न धारामें १३ वीं शताब्दी ही परिवर्तन काल माना जाता है । इस युगमें संगीतके उपकरणोंका विकास तो हुआ ही, साथ ही साथ उपकरणोंकी ध्वनिको भी लिपिबद्ध करनेका प्रयास किया Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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