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________________ महाकोसलकी कतिपय हिन्दू-मूर्तियाँ एवं रायपुर ज़िलोंमें उपलब्ध होती हैं । आदिवराहकी मूर्तियाँ जितनी विशाल महाकोसल में उपलब्ध होती हैं वैसी अन्यत्र कम । इन मूर्तियोंपर पौराणिक देवताओंकी सहस्रों छोटी-बड़ी मूर्तियाँ उत्कीर्णित मिलती हैं । पनागरका आदिवराह मैंने स्वयं देखा है। भू-वराहकी अत्यंत सुन्दर एवं कलापूर्ण प्रतिमा राजीवलोचनके मंदिर में सुरक्षित है। छोटी मूर्तियाँ तेवर और बिलहरीमें दर्जनों पाई जाती हैं, जिनमें वराह पृथ्वीको उठाये हुए मुँह ऊँचे किये बताये गये हैं। इस आकृतिकी १२वीं शतीतककी प्रतिमाएँ छोटे रूपमें काफ़ी मिलती हैं। इसी प्रकार विष्णुके अन्य अवतार भी महाकोसलमें पाये जाते हैं। बिलहरीमें ( कटनीसे १० मील पश्चिम) विष्णुवराहका स्वतन्त्र मंदिर ही पाया जाता है, जिसकी चौखटपर गंगाकी खड़ी मूर्तियाँ पाई गई हैं। कलचुरि यशःकर्णदेवके समयकी तीन वैष्णव मूर्तियाँ मुझे पनागरमें देखनेको मिली थीं। ये तीनों बेजोड़ हैं। यों तो दो स्वतंत्र शिलाओंपर खुदी हैं। इनमें गोवर्द्धनधारी विष्णु हैं, पासमें कुछ गोप व गायोंका झंड, विस्फारित नेत्रोंसे खड़ा है । गोपके वस्त्र प्रेक्षणीय हैं। पट्टशिलापर लेख खुदा है। तीसरी प्रतिमा विष्णुजन्मके भावोंको स्पष्ट करती है। ये तीनों अवशेष इस बातके परिचायक हैं कि कलचुरि-कालमें भी वैष्णव परम्परा यहाँ जीवित थी। दशावतारयुक्त विष्णुकी एक अतीव सुन्दर और कलापूर्ण प्रतिमा मेरे संग्रहमें है । परिचय इस प्रकार है दशावतारी विष्णु कटनी नदीके मसुरहा घाटपर पाई गई वह संम्पूर्ण प्रतिमा ५०१०x२६३" है । भगवान् विष्णु बीचमें खड़े हुए हैं, जिनका विस्तार ३६" x २०" है । प्रतिमाकी खूबी यह है कि यह एकदम खुदी खड़ी है। पीछे कोई आधार भूमि नहीं रखी गई । सामान्य रूपसे परिकरमें खुदे 'राजिम, जिला रायपुर । चित्रके लिए देखें 'भारतीय अनुशीलन' । २६ Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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