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________________ मध्यप्रदेशका हिन्दू पुरातत्त्व ३८७ मठोंकी स्थापना की गई। राजाओं द्वारा तान्त्रिक परम्पराका समादर राजशेखरकृत कर्पूरमहाकोसलीय तान्त्रिक किया जाता था । भवभूतिकृत मालती - माधव, मंजरी तथा कलचुरि कालीन ताम्र व शिलालेखों से समूहको समुचित रीत्या समझ सकते हैं। पुरातन मूर्तियाँ भी उपर्युक्त विचार परम्पराका समर्थन करती हैं। ग्रामीण जनता भी अपनी शक्ति व मतिके अनुसार देवी- पूजा कर कृत-कृत्य होती है । महाकोसल में बहुत से स्थान मैंने देखे हैं, जहाँ जनताने, किसी भी धर्ममान्य मूर्ति, उसका खण्डित अंश, या कोई भी गढ़े गढ़ाये पत्थर या समूहको एक स्थानपर स्थापित कर, सिन्दूर से पोतकर उसे या उन्हें 'खैरमाई', 'खैरदैया' आदि नामोंसे पुकारा है । अवान्तर रूपसे इस प्रकारकी मान्यता के पृष्ठभाग में शक्ति-पूजा के बीज ही प्रतीत होते हैं । ऐसे स्थानोंका अध्ययन भी, पुरातत्त्व शास्त्रियों व विद्यार्थियों के लिए नितान्त वांछनीय है, क्योंकि ऐसे समूहमें कभी-कभी अत्यंत महत्वपूर्ण कलाकृति उपलब्ध हो जाती है । पनागर, त्रिपुरी, बिलहरी, कौहरगढ़, लाँजी, किरनरपुर, कारीतलाई, आरंग, रायपुर, लखनादौन, iiौर, रत्नपुर और नागरा आदि अनेक स्थानोंपर पुरातन अवशेषों का समूह शक्तिके विभिन्न रूपान्तर के रूपमें पूजा जाता है । स्थानाभाव से मैं जानबूझकर मध्यप्रदेश के दुर्गों का उल्लेख नहीं कर रहा हूँ, परन्तु ये भी हिन्दू - पुरातत्व के खास अंग माने जाते हैं। पुरातन वापिकाओं की भी गिनती इसमें होनी चाहिए थी । भविष्य में दुर्गपर स्वतंत्र विचार करनेकी भावना है। क्योंकि यहाँकी दुर्ग-निर्माण- पद्धति स्वतंत्र ढंगकी रही है । इस प्रकार हिन्दू धर्माश्रित, शिल्पस्थापत्य कला के अति उत्कृष्ट व मनोहर प्रतीक पुरातन खंडहर में प्राप्त होते हैं । अगणित भू-गर्भ में डटे पड़े हैं । जो बाहिर हैं वे भी दैनंदिन नाशकी ओर अग्रसर हो रहे हैं । पूर्व पुरुषों द्वारा इनपर अगणित सम्पत्ति व्यय हुई । कलाकारोंने आत्मिक सौंदर्यको कुशलतापूर्वक मूर्त रूप दिया, पर श्राज समय ऐसा आया है कि Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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