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________________ - ३० - मूक विषयसे सम्बन्ध होनेके कारण उपलब्ध नवीन तथ्योंका उल्लेख अावश्यक हो गया। पृष्ठ १६५में सूचित किया जा चुका है कि महाकोसलमें प्राचीन स्थापत्य विषयक जैन खण्डहरों में पारंगका ही एक मंदिर है किंतु अब मैं संशोधन करता हूँ। उपर्युक्त मंदिरकी कोटिके दो और मंदिरोंका अस्तित्व पनागर व वरहटामें पाया गया है निःसन्देह यह दोनों मंदिर न केवल स्थापत्य-कलाके भव्य प्रतीक ही हैं अपितु कुछ नवीन तथ्योंको लिये हुए हैं । बरहटाका मंदिर संपूर्ण महाकोसलके मंदिरोंका सफल प्रतिनिधित्व करता है। वहाँकी अति विशाल जैन-मूर्तियाँ पांडवोंके नामसे अाज भी पूजी जाती हैं । संस्कृति, प्रकृति और कलाके संगम स्थान बरहटामें १५० से अधिक व अत्यल्प खंडित तीर्थंकरोंके ये प्रतीक सरोवरके धोबी-घाटोंमें लगे हुये हैं। कुछ-एक मूर्तियों का उलटाकर चटनी व भंग पीसनेमें प्रयुक्त होती हैं। कलचुरियोंके समय बरहटा जैनधर्म व संस्कृतिका महाकेन्द्र था। वह अाज यह उपेक्षित अरक्षित व समाज द्वारा विस्मृत खण्डर मात्र रह गया है । __ पनागर (जिला होशंगाबाद) दूधी नदीके किनारे बसा हुआ है। इसी नंदीके तटपर अतिविशाल व सुंदर कोरणी युक्त जैनमंदिर था जो अभीअभी मिटा है। एक ही इस मंदिरके संपूर्ण अवशेष यत्रतत्र १२ मीलकी परिधिमें छाये हुये हैं। किंतु मंदिरका व्यास रिक्त स्थानते अांका जा सकता है। मंदिरमेंसे यों तो ५० प्रतिमाएँ उपलब्ध हुई थीं, सब लेखयुक्त थीं। सलेख मूर्तियोंकी सामूहिक उपलब्धि पनागरको छोड़कर अन्यत्र महाकोसलमें कहीं नहीं हुई। संपूर्ण लेख तेरहवीं शताब्दी के उत्तरार्धसे संबद्ध हैं । महाकोसलकी मूर्ति-निर्माण कलापर इन लेखोंसे कुछ प्रकाश पड़ता है। उपलब्ध लेख ये हैं। प्रतिमा १८x१८ इंच १. "संवत् १२४४ फाल्गुन सुदि ४ गुरौ उ..."सवाल्यवये साधु देह सुत साधु तोहट भार्या साकसीया प्रणमति नित्यं । Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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