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________________ मध्यप्रदेशका हिन्दू-पुरातत्व ४२३) का पिता था और वह वाकाटकोंकी अधीनतामें मध्यप्रदेश में शासन' करता था। . गुप्त-लेख वर्णित अष्टादश अटवीवाला प्रदेश भी मध्यप्रदेशके ही निकट पड़ता था। मुसलमान-तवारीखोंमें, इस ओर गोड़ोंकी संख्या अधिक होने के कारण, इसे गोड़वाना नामसे सम्बोधित किया गया है। लक्ष्मीवल्लभने अपने देशान्तरीछन्दमें छत्तीसगढ़के सामाजिक व धार्मिक वन्य प्रथाओंकी चर्चा की है, पर उसमें भी छत्तीसगढ़का उल्लेख न होकर गोड़वाना उल्लिखित है। ये कवि १८ वीं शताब्दीके जैनमुनि हैं। कुछ लोग छत्तीसगढ़को अंग्रेजो शासनकी देन मानते हैं, पर मैं नहीं मानता, कारण कि एक जैन विज्ञप्ति पत्र संवत् १८१६ का उपलब्ध हुआ है जो रायपुरसे लिखा गया है, उसमें छत्तीसगढ़ नाम पाया जाता है । तात्कालिक जैन व्यक्तियोंके पत्रव्यहार में भी यही नाम व्यवहृत हुआ है, जब कि अंग्रेज़ोंने प्रान्तवार विभाजन तो सन् ५७की ग़दरके बाद किया है। डोंगरगढ़की बिलाई डोंगरगढ़ गोंदियासे कलकत्ते जानेवाले रेलवे मार्गपर लगभग ४० मील है । स्टेशनके समीप ही छोटी-सी पहाड़ी दृष्टिगोचर होती है जिसपर बमलाई-विमलाईका स्थान बना हुआ है। यद्यपि शक्तिके ५२ पीठोंमें इसकी परिगणना नहीं की गई, पर छत्तीसगढ़की जनता इसे अपने प्रान्तका सिद्धपीठ मानती है। पहाड़ोके ऊपर जो स्थान विद्यमान है व मूर्ति विराजमान है, उसपरसे न तो उसकी प्राचीनताका बोध होता है, एवं न उसकी मूलस्थितिका या देवीके स्वरूपका ही पूर्ण पता चलता है, कारण कि किसी भक्त द्वारा देवीकी मढ़िया जीर्णोद्धत हो चुकी है। ई. हि. क्वा० भा० १, पृ० २५५ । Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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