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________________ मध्यप्रदेशका हिन्दू-पुरातत्त्व ३७१ व्यवस्थापक बाबू तारासिंहजी बता रहे थे कि एक समय किसी कार्यवश दुर्गके एक भागको तुड़वाना पड़ा था। उस समय इसकी नींवमें मन्दिरके अवशेष निकले । जब इन अवशेषोंको हटानेकी चेष्टा की गई, तो ज्ञात हुआ कि इनके नीचे एक और ध्वस्तगृह अवस्थित है। इसमें कुछ मुद्राएँ भी थीं। कुछेक मूर्तियाँ भी निकली थीं। उनमेंसे नमूनेके बतौर कुछ अपने किले के बड़े फाटकके दाहिनी ओर दीवालसे सटाकर रखी हुई हैं। एक प्रतिमा दशावतारी विष्णुकी है। कलाकी दृष्टि से यह मूर्ति बहुत ही सुन्दर है। कटनीकी विष्णुमूर्तिसे इसकी तुलना की जा सकती है । ___भंडारा जिले में नागरा पमपुर और लंजिला-( लॉज़ी) आदि स्थानोंपर हिन्दूधर्म मान्य कलावशेषोंकी उपलब्धि होती है। कुछेक स्थान पुरातत्त्व विभाग द्वारा सुरक्षित भी हैं । छत्तीसगढ़ __इस भू-भागमें रायपुर, बिलासपुर, रायगढ़, जगदलपुर और द्वेग आदि जिले सम्मिलित हैं। स्वतंत्र जो राज्य थे, उनका इन जिलोंमें अन्तर्भाव कर दिया गया है । आजका यह उपेक्षित छत्तीसगढ़, किसी समय संस्कृति और सभ्यताका पुनीत केन्द्र था । स्पष्ट कहा जाय तो आदि-कालीन मानव सभ्यता इस वन्य भू-भागमें पनपी थी। अरण्यमें निवास करनेवाली ४५से अधिक जातियोंको आजतक इस प्रदेशने सुरक्षित रखा है। उनके सामाजिक आचार व व्यवहारमें भारतीय संस्कृतिके वे तत्व परिलक्षित होते हैं जिनका उल्लेख गृहसूत्रोंमें आया है। इनके संगीत-विषयक उपकरण, आभूषण व नृत्य परम्परामें आर्य संस्कृतिकी आत्मा चमकती है । यहाँपर सुसंस्कृत कलाका विकास भले ही बादमें हुआ हो, पर आदि मानव सभ्यता व लोक शिल्प एवं ग्रामीण रुचिके प्राकृतिक-प्रतीक बहुतसे मिलते हैं । इनमें पुरातत्वका इतिहास और मूर्तिकालके बीज खोजे जा सकते हैं। इनके रहन-सहन और त्योहारों में जो सांस्कृतिक तत्त्व पाये Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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