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________________ खण्डहरोंका वैभव मस्तकपर स्थित मुकुटकी आकृति भी शिव मुकुटकी ही नाई है । मुकुटकी आकृति भले ही भगवान् शंकरकी नाई हो, अपरिचितको यह भ्रम तो सहज ही होता है- परन्तु ललाटपर जो स्पष्ट रेखाओंसे मुद्रा सूचित होती है वह भगवान् बुद्धकी अपनी विशिष्ट प्रवचन मुद्रा है। बायें हाथपर जो कमलका फूल, सदण्ड दृष्टिगोचर होता है, वह भी इसके अवलोकितेश्वरका समर्थक है। अवलोकितेश्वरकी विभिन्न आभरणोंसे भूषित इस मूर्तिमें हाथोंमें कंकण और बाजूबन्द, कंठमें हार, चरणोंमें पैजन और कर्णफूल, केयूर सभी स्पष्टतः अंकित हैं। अब हम अवलोकितेश्वर-आसन रचनाको देखें। ऐसे आसनकी रचना गुप्तकाल एवं अन्तिम गुप्तोंके युगमें होती थी। इसे "घंटाकृति" कमलका आसन कहते हैं । यही एक ऐसा आसन रहा है, जिसे बिना किसी धार्मिक भेद-भावके सभी कलाकारोंने स्वीकार किया था। प्रतिमाकी मुखमुद्रामें गम्भीर चिन्तन स्पष्टतः परिलक्षित है। सबसे आश्चर्यकी बात है कि यह प्रतिमा जिस पत्थरसे गढ़ी गई है, वह अत्यन्त निम्न कोटिका है । अर्थात् आप सादा-सा कड़ा पत्थर लेकर उसे अगर घिसने लगें तो धूल-कण बड़ी सरलतासे खिरने लगते हैं । यहाँतक कि यह पत्थर हाथसे छूनेपर भी रेत कण हाथमें लगा देता है। यह कहे बिना नहीं रहा जाता कि जितना ही रद्दी यह पत्थर है, अवलोकितेश्वरकी प्रतिमा उतनी ही सुन्दर एवं भावपूर्ण है। इसके निर्माणयुगमें इससे न जाने कितने भक्तोंने शान्ति और भक्तिका रसास्वादन किया होगा। परन्तु आजका उपहास मिश्रित सत्य यह है कि यह एक उपेक्षित प्रतिमा रही, जिसे मैंने पाया। प्रतिमाके अधोभागमें तीनों ओर एक पंक्तिमें लेख खुदा हुआ है। क्षरणशील पत्थर होनेके कारण एवं वर्षोंतक अस्तव्यस्त स्थितिमें पड़े रहनेके कारण, वह स्पष्ट पढ़ा नहीं जा सका। बायीं ओरवाली पादपीठका भाग घिस-सा गया है। सामने भागपर जो पट्टिका दृष्टिगोचर होती Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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