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________________ मध्यप्रदेशका बौद्ध-पुरातत्त्व दूसरी घटना बुद्धदेवके निर्वाणसे सम्बद्ध है। एक लम्बी चौकीपर, सुन्दर गोल तकियेके सहारे बुद्धदेव लेटे हुए हैं। एक शिष्य सिरहाने व तीन चरणके पास सशोक मुद्रामें बैठे हैं। ___ तीसरी घटना बुद्धदेवकी तपश्चर्याका परिचय देती है । निकट ही बंदरोंका यूथ भी बताया गया है। अन्य धातु-मूर्तियाँ इतनी नग्न और अश्लील हैं कि उनका शब्दचित्र मेरी लेखनीका विषय नहीं हो सकता। जिन्होंने नेपाली व तिब्बतीय तन्त्र-परम्परामान्य वज्रयानकी तान्त्रिक मूर्तियाँ देखी हैं, वे इन मूर्तियोंकी कल्पना भलीभाँति कर सकते हैं । तीन ऐसी मूर्तियाँ हैं, जिनकी कमल पंखुरियोंपर स्वर्णादित्य और मैत्रेय ये नाम पढ़े जाते हैं। मूर्तियोंकी प्राप्ति व निर्माणकाल इतने विवेचनके बाद प्रश्न यह उपस्थित होता है कि ये मूर्तियाँ कहाँसे आई और इनका निर्माणकाल क्या हो सकता है ? __ वर्तमानमें यह सब धातु-मूर्तियाँ वहाँ के भूतपूर्व मालगुज़ार श्यामसुन्दरदासजी (खंडूदाऊ) के अधिकार में हैं । वे बता रहे थे कि सिरपुरमें सरोवर के तीरपर एक मन्दिर है, उसमें खुदाईका काम चल रहा था, जब जमीनमें सब्बल लगते ही खनखनाहट भरी ध्वनि हुई, तब वहाँ के पुजारी भीखणदासने कार्य रुकवाकर नौकरोंको बिदा किया और स्वयं खोदने लगा। काफ़ी खुदाई के बाद, कहा जाता है कि एक बोरेमें ये मूर्तियाँ निकली और उसने उपर्युक्त मालगुजारको सौंप दी। विशुद्ध धार्मिक व जानपदीय मानस होनेसे, पहिले तो वे स्वीकार करनेमें हिचके, पर स्वर्णसे चमचमाती हुई मूर्तियोंने उन्हें अपने घर लिवा ले जानेको बाध्य किया, जैसा कि कहीं-कहीं मूर्तियोंके उपांगोंपर पड़े हुए छैनीके चिह्नों १. 'रायपुर जिले में स्थानीय अग्रवालोंकी प्रसिद्धि 'दाऊ' शब्दसे है। Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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