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________________ खण्डहरोंका वैभव मंदिर के निकट ही एक लकड़ीका कारखाना है, लकड़ी के ढेर में भी कई कला-कृतियाँ दबी पड़ी हैं । कुछेक तो खंडित भी हो गई हैं, जितना भाग बचा है, यदि सावधानीसे काम न लिया गया तो वह भी नष्ट हो जायगा । दुर्ग द्वारपर भी जैन प्रतिमाएँ लगी हैं। ऊपरकी दीवाल भी खाली नहीं । संस्कृत पाठशाला पुराने किले में लगती है । २६२ उष्ण जलकुण्ड यहाँ से ४ फर्लांग दूर एक शिवमंदिर है, वहाँ पर भूमिसे गरम जल निकलता है । लोगों का विश्वास है कि यह कई रोगोंको नाश करनेवाला जल है । इस ओर जब हमलोग गये तो आश्चर्यचकित रह गये । जलको रोकने के लिए जनताने छोटी-सी दीवार खड़ी कर दी है। इसमें जैनप्रतिमाओंकी बहुलता है। नालोंपर भी तीन छोटी-सी मूर्तियाँ, लोगों के आराध्य देवता माने जाते हैं । प्रति दिन काफ़ी लोग जल चढ़ाने के लिए आते हैं । जनताका विश्वास है कि बिना इनको प्रसन्न रखे कोई कामकी सिद्धि नहीं होती । इतनी ग़नीमत है कि ये देवता सिन्दूर से अलंकृत नहीं हुए, पर वस्त्रोंसे तो भूषित कर ही दिये गये हैं । ये तीनों मूर्तियाँ क्रमशः शान्तिनाथ, मल्लिनाथ और नेमिनाथकी हैं । यहाँ से हमलोग ताला की ओर जाना चाहते थे, इतने में किसी काछीने सूचित किया कि मेरे बगीचे में भी पुरानी प्रतिमाएँ हैं, चाहें तो श्राप लोग पूजा के लिए ले जा सकते हैं । इस बग़ीचे में चारों ओर घने वृक्षों में किसी मंदिर के स्तम्भों की कीचक आकृतियाँ हैं । ये ४ || फुटसे कम लंबे-चौड़े न होंगे, परन्तु न जाने कितनी शताब्दियों से यहाँपर हैं, कारण कि ३ अंश तो वृक्षों की जड़ों में इस प्रकार गुँथ गये हैं, कि उनको सरकाना तक असंभव है । राममन्दिर 1 जसमें प्रवेश करते ही प्रथम राममंदिर आता है । इसके प्रवेश द्वारपर ही सयक्ष दम्पती नेमिनाथ भगवान्की मूर्ति अधिष्ठित है । इसके दोनों ओर Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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