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________________ २८२ खण्डहरोंका वैभव उन दोनोंके धड़ खंडित कर दिये गये हैं, तथापि चरण भाग स्पष्ट हैं । दोनों हाथियोंके पृष्ठभागमें १, १ स्त्रीका मस्तक दिखलाई पड़ता है। अब प्रतिमाके निम्न स्थानको भी देख लें। ऊपर ही सूचित किया जा चुका है कि कलाकारने सर्पासन बना दिया है, परन्तु वह सर्प भी गोलाकृति एक चौकी जैसे स्थानपर बना हुआ है, जिसको दोनों ग्राह थामे हुए हैं । दायें भागके ग्राहके निम्न भागमें एक भक्त करबद्ध अंजलि किये हुए अवस्थित है । बायीं ओर भी स्त्री या पुरुषको जैसी ही आकृति रही होगी, जैसा कि अन्य प्रतिमाओंमें देखा जाता है, परन्तु यहाँ तो वह स्थान हो खंडित कर दिया गया है, मध्य प्रतिमाके निम्न भागमें चतुर्भुज देवी उत्कीर्णित हैं । इनके दाहिने हाथमें चक्र या कमल दिखाई पड़ता है, स्थान बहुत घिस जाने के कारण निश्चित नहीं कहा जा सकता कि क्या है । दाहिना दूसरा हाथ वरद मुद्राको सूचित करता है । बायाँ हाथ सर्वथा खंडित होनेसे नहीं कहा जा सकता है कि उसमें क्या था । स्त्रीकी इस प्रतिमाको पद्मावती ही मान लेना चाहिए । कारण कि वही पार्श्वनाथकी अधिष्ठातृ देवी है । इसके बायीं ओर हाथ जोड़े एक भक्त दिखलाई पड़ता है, इसके ऊपर भी तीन नागफण दृष्टिगोचर होते हैं । बायीं ओर अधिकतर भाग खंडित हो गया है । परन्तु घुटनेका जितना हिस्सा दिखता है, उस परसे कल्पना की जा सकती है कि दायीं ओर-जैसी ही बायीं ओर भी रही होगी। इस प्रतिमाका कलाकी दृष्टि से विशेष महत्त्व न होते हुए भी विधान वैविध्यकी दृष्टिसे कुछ महत्व तो है ही। निर्माणकाल १४ वीं शताब्दीके बादका ही प्रतीत होता है। ___अजायबघरमें प्रवेश करते ही बाँयी ओर ४ अवशेष रखे हुए हैं जिनमें दो किसी मंदिरके तोरणसे सम्बन्ध रखनेवाले एवं एक चतुर्भुजी देवीके हैं। हस्त खंडित होनेके कारण नहीं कहा जा सकता कि वह किसकी है । पर अजायबघरवालोंने लक्ष्मी बना रखा है। संख्या ५२-इसके बाँयों ओर ऋषभदेव स्वामीकी प्रतिमा अवस्थित Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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