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________________ विन्ध्यभूमिकी जैन-मातयाँ २७६ होता है । यह मूर्ति मस्तकविहीन है। लम्बाई १५ इंच चौड़ाई ११॥ इंच है। ___ संख्या ३२-लम्बाई १३॥ चौड़ाई १७, यह किसी जैन मूर्तिका परिकर प्रतीत होता है। आजू बाजू पार्श्वद और दोनों ओर ३, ४, मूर्तियाँ खड्गासन पद्मासन । दायाँ ऊपरका कुछ भाग खंडित है । कलाकी दृष्टि से अति साधारण है। संख्या ८८–प्रस्तुत अवशेष किसी जैन मंदिरके तोरणका है, मध्य भागमें तीर्थंकरकी मूर्ति ४॥ इंचकी है, आजू बाजू परिचारिकाएँ चामर लिए अवस्थित हैं। संख्या १२७-२६४१६॥ इंच । प्रस्तुत प्रतिमा संयुक्त है । एक वृक्षकी छायामें दाईं ओर यक्ष और बाई ओर दाई गोदमें बच्चा लिये एक यक्षिणी अवस्थित हैं, दोनोंके चरणोंमें स्त्री-पुरुष बैठे हैं। यक्ष एवं यक्षिणियोंके आभूषण और वस्त्र इतने स्पष्ट हैं कि तादृश वस्तुस्थिति उत्पन्न कर देते हैं। यक्षके मुखका कुछ भाग और मुकुट अजन्ताके चित्रकलाका सुस्मरण कराता है। दोनोंके दायें बायें स्कन्धप्रदेशके पास कमलासनपर स्त्रियाँ हाथ जोड़े बैठी हैं। वृक्षके मध्य भागमें जिनमूर्ति अवस्थित है, यह गोमेध यक्ष अम्बिका और नेमिनाथ क्रमशः हैं। मूर्तिका निर्माणकाल १२वीं सदीके बादका नहीं हो सकता, क्योंकि पालकालीन शिल्पकला मूर्ति के अंग-अंगपर विकसित हो रही है। उपर्युक्त मूर्ति के समान ही कुछ परिवर्तनके साथ १२७ वाली मूर्तिसे मेल खाती है। दोनोंकी एक ही संख्या है। संख्या ६६—की प्रतिमा एक देवीकी है, जो आम्रवृक्षके नीचे सिंहपर सवारी किये हुए, बायीं गोदमें एक बच्चा लिये बैठी हैं। दायीं ओर एक बालक खड़ा है। दोनों आम्र पंक्तियोंके बीच तीर्थंकरकी मूर्ति है। संख्या ४२–की प्रतिमा ५२ इंच लम्बी और २२ इंच चौड़ी है। भगवान् पार्श्वनाथकी प्रतिमा खडगासनस्थ है। दोनों हाथ एवं दायाँ Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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