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________________ खण्डहर-दर्शन भारतवर्षका सांस्कृतिक वैभव खण्डहरोंमें बिखरा पड़ा है। खण्डहर मानवताके भव्य प्रतीक हैं। भारतीय जीवन, सभ्यता और संस्कृतिके गौरवमय तत्त्व पाषाणोंकी एक-एक रेखामें विद्यमान है। वहाँको प्रत्येक कृति सौन्दर्यका सफल प्रतिनिधित्व करती है। जनजीवनका उच्चतम रूप और प्रकृतिका भव्य अनुकरण कलाकारोंने संस्कृतिके पुनीत प्रकाशमें, कलाके द्वारा जिस उत्तम रीतिसे किया है, वही हमारी मौलिक सम्पत्ति है । खण्डहरोंके सौन्दर्य सम्पन्न अवशेष हृत्तंत्रीके तारोंको झंकृत कर देते हैं । हृदयमें स्पंदन उत्पन्न कर देते हैं। प्रकृतिकी सुकुमार गोदमें पले कलात्मक प्रतीकोंके दर्शनसे अनिर्वचनीय आनन्द प्राप्त होता है। रसपूर्ण प्राकृतियाँ "रसोऽयमात्मा”की अमर उक्तिपर मुहर लगा देती हैं । आन्तरिक वृत्तियाँ जागृत हो जाती हैं और मानव कुछ क्षणों के लिए अन्तर्मुख हो, आत्म दर्शन करने लगता है। अात्मीय विभूतियोंके प्रति सम्मानसे मस्तक झुक जाता. है । जीवनमें अदम्य उत्साह छा जाता है । कलात्मक कृति रूपी लताते परिवेष्टित खण्डहर, कलाकारोंको या दृष्टिसम्पन्न मनुष्योंको नन्दन वन-सा लगता है। वहाँके कण-कणमें संस्कृति और साधनाके मौन स्वर गुंजरित होते हैं । एक-एक ईट व पाषाण अतीतका मौन संदेश सुनाते हैं । वहाँकी मृतिकाका संसर्ग होते ही मानस पटलपर उच्चकोटिके भाव त्वरितगतिसे बहने लगते हैं । कलाकार अपने आपको खो बैठता है। उसकी दृष्टि शिल्प गौरवसे स्तंभित हो जाती है, जैसे अर्थ गौरवके साहित्यिक की। तन्मयता, वाणीविहीन भाषाका काम करती हैं । जीवनका सत्य प्राप्त करनेके लिए एकाग्रता वांछनीय है । कलाकारका दृष्टिकोण जितना निर्मल, व्यापक, शुद्ध और बलिष्ठ होगा और जितनी रस-ग्रहण शक्ति Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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