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________________ विन्ध्यभूमिको जैन- मूर्तियाँ २६७ आज विन्ध्यप्रदेश में जहाँ कहीं पर भी खंडहरोंमें जाकर देखें तो, वहाँ जैन अवशेष अवश्य ही दृष्टिगोचर होंगे, भले ही वहाँ जैनी न बसते हों । गत वर्ष मैंने स्वयं भ्रमण कर, अनुभव किया है । नदी तीर, जलाशय, कूप एवं वापिकाओं तक में जैनमूर्तियाँ उपेक्षित-सी पड़ी हैं। मकानोंकी दीवालों में तो मूर्तियों का रहना आंशिक रूपसे क्षम्य हो भी सकता है, पर मैंने दर्जनों मूर्तियाँ सीढ़ियों और पाखानोंमें से निकलवाई हैं । यह साम्प्रदायिक दूषित मनोभावों का प्रदर्शन मात्र है । पचासों स्थानपर जैन मूर्तियाँ "खेरमाई” के रूप में पूजी जाती हैं । जसो, मैहर, उचहरा और रीवांमें मैंने स्वयं इस प्रकार उन्हें अर्चित देखा है । आज प्रयाग-संग्रहालय में जितनी भी जैन प्रतिमाएँ हैं, उनमें से बहुत बड़ा भाग विन्ध्यप्रान्त से प्राप्त किया गया है । जसोमें तालाब के किनारे एक हाथी मर गया, जहाँ उसे गाड़ा गया, वहाँ कुछ गढ़ा रिक्त रह गया, तब जैन मूर्तियोंसे उसकी पूर्ति की गई । जसो जैन मूर्तियोंका नगर है । जहाँ खोदें वहीं मूर्ति । यह हाल सारे प्रान्तका | । कई सुन्दर जैन मन्दिर भी अवश्य ही रहे होंगे, कारण कि तोरणद्वार के जैन अवशेष और मानस्तंभ तो मिलते ही हैं । मन्दिर न मिलनेका केवल यही कारण पर्याप्त नहीं हैं कि वे गिर पड़े, परन्तु मुझे तो ऐसा लगता है, जहाँ जैन थे वहाँ तो मन्दिर सुरक्षित रहे, जहाँ न थे वहाँ मूर्ति बाहर फेंक एक दर्जन स्थान मैंने स्वयं ऐसे दी और ये अजैनोंके अधिकृत हो गये । देखे हैं । वहाँकी जनता भी स्वयं स्वीकार करती है । यहाँपर मैं एक बातका स्पष्टीकरण कर दूँ कि मैं सम्पूर्ण विन्ध्यप्रान्त में नहीं घूमा हूँ, अतः जिन अवशेषोंको मैंने स्वयं देखा, समझा, उन्हींके आधारपर विचार उपस्थित कर रहा हूँ । हाँ, इतनी सामग्री से मेरा विश्वास अवश्य मज़बूत हो गया है कि यदि केवल कलात्मक अवशेषोंकी गवेषणाके लिए ही विन्ध्यप्रान्तका भ्रमण किया जाय तो निःस्सन्देह जैन शिल्पस्थापत्य कला के अनेक अश्रुतपूर्वं भव्य प्रतीक प्राप्त किये जा सकते हैं । बहुत स्थानोंसे मुझे सूचनाएँ मिली थीं कि वहाँ बहुत कुछ जैन सामग्री है । पर Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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