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________________ प्रयाग-संग्रहालयकी जैन-मूर्तियाँ कलाकारोंको, हृदय और मस्तिष्कके अनुकूल वायुमण्डल बनाकर, प्रोत्साहन दिया-खरीदा नहीं। जैन-पुरातत्वके इतिहासकी दृष्टि में बुन्देलखंडका स्थान अति महत्त्वपूर्ण रहा है । जैन शिल्प-स्थापत्य कलाके उच्चतम प्रतीक एवं विशेषतः जैन मूर्ति-निर्माण-कला तथा उसके विभिन्न अंगप्रत्यंगोंके विकासमें यहाँके कलाकारोंने, जो दक्षता प्रदर्शित की है, वह रस और सौन्दर्यकी दृष्टि से अनुपम है। खजुराहो और देवगढ़की एक बार कलातीर्थके रूपमें यात्रा की जाय, तो अनुभव हुए बिना न रहेगा कि, उन दिनोंके जैनोंका जीवन कला और सौन्दर्यके रसिक तत्त्वोंसे कितना अोतप्रोत था। जहाँपर एकसे एक सुन्दर भावमय, और उत्प्रेरक शिल्प कृतियाँ दृष्टिगोचर होंगी, जिन्हें देखकर मन सहसा कलाकारका अभिनन्दन करनेको विवश हो जायेगा । खजुराहोका वह शैव मन्दिरवाला शिखर आज बुन्देलखण्डमें विकसित कलाका सर्वोच्च प्रतीक माना जाता है । इसके कलात्मक महत्त्वके पोछे प्रचारात्मक भावनाका बल अधिक है । यद्यपि इनके भी सुन्दर कलापूर्ण जैन मन्दिरोंके शिखर, स्तम्भ और तोरण आदि कई शिल्प कलाके अलंकरण उपलब्ध होते हैं, परन्तु वे जैन होने के कारण ही आजतक कलाकारों और समीक्षकों द्वारा उपेक्षित रखे गये हैं। कलाकारोंकी दुनियामें रहनेवाला और सौन्दर्यके तत्त्वोंको आत्म-सात् करनेवाला निरीक्षक यदि कला जैसे अति व्यापक विषयमें पक्षपातकी नीतिसे काम ले, तो इससे बढ़कर और अनर्थ हो ही क्या सकता है ? ___ बुन्देलखण्डके देहातोंमें भी जैन अवशेष बिखरे पड़े हैं। इनको देखकर हृदय रो पड़ता है और सहसा कल्पना हो आती है कि हमारे पूर्वपुरुषोंने तो विशाल धनराशि व्यय कर, कलात्मक प्रतीकोंका सृजन किया और उन्हींकी सन्तान आज ऐसी अयोग्य निकली कि एतद्विषयक नवनिर्माण तो करना दूर रहा, परन्तु जीवनमें स्फूर्ति देनेवाले बचे-खुचे कलावशेषोंकी रक्षा करना तक, असंभव हो रहा है । इस वेदनाका अनुभव तो वही कर सकता है, जो भुक्त-भोगी हो। हमारी असावधानीसे, हमारे पैरों तले Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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