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________________ प्रयाग-संग्रहालयकी जैन-मूर्तियाँ इतने लंबे विवेचनके बाद मैं इस निष्कर्षपर पहुँचा हूँ कि राजगृह, रीवाँ, लखनऊ, मथुरा और प्रयाग आदि प्राचीन संग्रहालयोंमें आम्रवृक्षके निम्न भागमें, सिंहासनपर बैठी हुई, द्वय बालक युक्त, जितनी भी प्रतिमाएँ हैं वे भगवान् नेमिनाथकी अधिष्ठातृ अम्बिकाकी ही हैं। अतिरिक्त सामग्रो उपर्युक्त पंक्तियोंमें जैनसंस्कृतिके मुखको उज्ज्वल करनेवाले महत्त्वपूर्ण कलात्मक अवशेषोंका यथामति परिचय दिया गया है, अतः पाठक यह न समझ बैठे कि वहाँपर इतनी ही सामग्री है, अपितु वहाँपर ऐसी अनेक जिनमूर्तियाँ हैं, जिनका महत्त्व मूर्तिकलाके क्रमिक विकासकी दृष्टि से अत्यधिक है । समय अत्यन्त अल्प रहनेसे मैं उनका सिंहावलोकन न कर सका। विशेषतः मैं उन वस्तुओंका भी अवलोकन न कर सका, जिनके लिए यहाँका संग्रहालय विशेष रूपसे प्रसिद्ध रहा है। मेरा संकेत वहाँ के 'टेराकोटा'मृण्मूर्तियोंसे है । कारण कि यहाँका संग्रह इस विषयमें अनुपम माना जाता है। अधिकतर मृणमूर्तियाँ कौशाम्बीसे प्राप्त की गई हैं। कौशाम्बी एक समय श्रमण-संस्कृतिकी एक धारा जैन-संस्कृतिका केन्द्र रही है। भारतीय लोक-जीवनका सर्वांगीण प्रतिबिम्ब, यहाँके कलाकारों द्वारा मृणमूर्तियोंमें अधिक स्पष्ट रूपसे अभिव्यक्त हुआ है। जीवनके साधारणसे साधारण उपकरणपर भी कलाकारोंने ध्यान देकर उन्हें अमरता प्रदान की है। जैन तथा उनके विषयोंको भी मृणमूर्तियों द्वारा प्रकाशित करनेका श्रेय कौशाम्बीके कलाकारोंको ही मिलना चाहिए । प्रयाग-नगर-सभा-संग्रहालयमें बहुसंख्यक मृण्मूर्तियाँ हैं, जिनका विषय जैन-कथाएँ हैं, परन्तु जैन-कथा साहित्यकी सार्वत्रिक प्रसिद्धि न होनेसे या एतद्विषयक साधन, प्रान्तीय भाषाओंमें अनूदित न होनेके कारण, विद्वान् लोग इन "मृण्मूर्तियों” को देखकर भी न समझ पाते हैं, न चेष्टा ही करते हैं । अच्छा हो कोई दृष्टिसंपन्न जैन विद्वान् , इन विषयोंका अध्ययन कर, तथ्यको प्रकाशमें लावें । Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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