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________________ २५२ खण्डहरोंका वैभव खड़ी हो । इसी प्रकार परिकरका बायाँ भाग भी बना हुआ है। दूसरी पंक्तिके दोनों भागोंमें नवग्रहोंकी प्रतिमाएँ अंकित हैं। तदुपरि दाहिनी एवं बायीं ओर यक्षकी प्रतिमाएँ हैं। हाथमें चक्र है । ऊपरके भागमें दायें बायें सात-सात देवियोंकी प्रतिमाएँ हैं, जिनपर क्रमशः काली, महाकाली, मानसी, गौरी, गाँधारी, अपराजिता, ज्वालामालिनी, आदि नाम अंकित हैं। सभी देवियाँ अपने-अपने आयुधोंसे अंकित हैं । दायीं ओरकी मूर्तियोंका दायाँ पैर और बायीं ओरकी मूर्तियोंका बायाँ पैर इस प्रकार काटा गया है, जैसे एक ही क्षणमें क्रमशः खंडित करते हुए कोई आगे निकल गया हो । उपर्युक्त वर्णित प्रत्येक प्रतिमाके दोनों ओर खास-खास स्तम्भ बने हैं । प्रत्येकके नीचे तख्ती जैसा स्थान रिक्त है, जिसपर नाम उत्कीर्णित हैं। सभी मूर्तियोंकी भाव मुद्रा बड़ी प्रेक्षणीय एवं सहृदय कलाकारकी कुशल कृतिका सुस्मरण कराये बिना नहीं रहतीं। प्रधान प्रतिमाके ऊपरी भागमें पाँच खंडितांश दिखते हैं, जिनसे पता चलता है कि संभवतः वहाँपर देवीके मस्तकका छत्र रहा होगा । तदुपरि मध्य भागमें एक देवीका प्रतीक अंकित है। ऊपरके भागमें दो-दो देवियाँ सब मिलाकर चार देवियाँ हैं । इनके ऊपरी भागमें खड़ी एवं बैठी दो-दो जिन-मूर्तियाँ हैं। दोनों ओर कमलोपरि विराजमान परिचारक-परिचारिकाएँ हैं। इनके ठीक मध्य भागमें देवीके मस्तकपर नेमिनाथ भगवान्की प्रतिमा है, शंखका चिह्न स्पष्ट बना हुआ है। उपर्युक्त संपूर्ण परिकर में १३ जिन-प्रतिमाएँ, २३ अवांतर देवियोंकी जो नेमिनाथ-भिन्न तीर्थंकरोंकी अधिष्ठातृ देवियाँ हैं-मूर्तियाँ तथा मध्यमें प्रधान प्रतिमा, सब मिलाकर २४ देवी-मूर्तियाँ हैं। प्रकृत मूर्तिके नीचेके भागमें एक पंक्तिका लेख खुदा हुआ है । यद्यपि शामका समय हो जानेसे मैं इसे पूरा पढ़ नहीं पाया, परन्तु इससे इतना तो पता चल ही गया कि रामदास नामक व्यक्तिने इसका निर्माण करवाया था, वह पद्मावतीका निवासी था। लंबे विवेचनके बाद यह प्रश्न तो रह ही जाता है कि इस कलाकृतिका Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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