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________________ प्रयाग-संग्रहालयकी जैन-मूर्तियाँ २२१ मुनि श्रीसौभाग्यविजयजी इस बातकी इस प्रकार पुष्टि करते हैं संवत् सोल अड़तालिसें रे अकबर केरे राज . राय कल्याण कुबुद्धिरं रे तिहाँ थाप्या शिवसाजरे पृ० ७७ मुनि जयविजय भी इसका समर्थन इन शब्दोंमें करते हैं राय कल्याण मिथ्यामतीए, कीधउ तेणई अन्याय तउ, जिन पगलां ऊठाडियाँए, थापा रुद्र तेण ठाय तउ, पृ० २४ ऊपरके सभी उल्लेख एक स्वरसे इस बातका समर्थन करते हैं कि १६वीं शताब्दीके पूर्व अक्षयवट के निम्न भागमें जिन-चरण तो थे, पर बादमें संवत् १६४८ में सत्ताके बलपर रायकल्याणने शिवचरण स्थापित करवा दिये, संभव है उन दिनों या तो जैनोंका अस्तित्व न होगा या दुर्बल होंगे। - अब प्रश्न यह उठता है कि कल्याणराय कौन था ? और उसने इस प्रकारका कार्य किन भावनाओंके वशीभूत होकर किया। उनका उत्तर तात्कालिक इतिहाससे भली-भाँति मिल जाता है । "अकबरनामा'' और "बदाउनी' से ज्ञात होता है कि स्तंभतीर्थ-खंभायतका ही वैश्य था, वह जैनोंको बहुत कष्ट पहुँचाता था। एकबार अहमदाबादके शासक, मिर्जाखाँने पकड़ लानेका आदेश दिया था, पर वह स्वयं वहाँ चला गया और अपने अपराधके लिए क्षमा याचना की। स्मरण रहे कि यह राज्याधिकारियोंमेंसे एक था। अकबरके पास जब जैनोंने अपनी कष्ट-कहानी रखी, तब बादशाहने उनका तबादला बहुत दूर प्रयाग कर दिया और प्रतिशोधकी भावनाके कारण उसने प्रयागमें उपर्युक्त कृत्य किया। सत्रहवीं शतीके सुप्रसिद्ध विद्वान् और कल्याणरायके समकालीन भाग ३, पृ० ६३ । भाग २, पृ० २४६ । Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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