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________________ २१२ " खण्डहरोंका वैभव पास पाँच भक्तोंकी समर्पण मुद्राएँ दिखाती हैं । स्त्री-पुरुष दोनों ही इनमें हैं । एक भक्तका सिर टूट गया है। परिकरके दोनों ओर व्याल (ग्रास मकर) खड़े हुए हैं। प्रतिमाके पीछे २,३ लकीरें पड़ी हुई हैं। इनमें कुछ और भी खुदाई है। असंभव नहीं कि कलाकार साँचीके तोरणसे भीप्रभावित हुआ हो क्योंकि इन मूर्तियोंमें भी जो मध्यप्रदेश में पाई गई हैं-इसी प्रकारकी रेखाएँ मिलती हैं। कहीं-कहीं साँचीके तोरणकी आकृति बहुत ही स्पष्ट रूपसे मिली है। इस प्रकारकी शैलीका समुचित विकास सिरपुरकी धातुमूर्तियोंमें पाया जाता है। मस्तकके पीछे पड़ी प्रभावली बहुत ही अस्पष्ट जान पड़ती है,तो भी सूक्ष्मतया देखनेपर कमलकी पंखुड़ियोंका आकार लिये है। ये पंखुड़ियाँ गुप्तकालमें काफ़ी ऊँचा स्थान पा चुकी थीं, एवं इस परम्पराका प्रभाव १३ वीं शतीतककी मूर्तियोंकी प्रभावलीमें मिलता है । प्रभावलीके उभय ओर पुष्पमाला लिये दो गंधर्व गगनमें विचरण कर रहे हैं । गन्धर्वको मुखमुद्रा सुन्दर है । दूसरे गन्धर्वकी आकृति टूट गई है। प्रश्न होता है कि प्रस्तुत प्रतिमा किस देवीको होनी चाहिए ? यद्यपि ऐसा स्पष्ट न तो लिखित प्रमाण है और न इस प्रकारकी अन्य प्रतिमा ही कहीं उपलब्ध है। बायीं गोदमें एक बच्चे के कारण एवं ६ भक्तोंके निम्न भागमें जो प्रतिमाएँ अंकित हैं-दायें भागमें मूर्ति खंडित हो गई हैउनके कारण यदि इसे अंबिकाकी मूर्ति मान लिया जावे तो अनुचित न होगा। बात यह है कि अन्य मुद्राओंमें अम्बिकाकी जितनी भी मूर्तियाँ महाकोसल एवं तत्सन्निकटवर्ती प्रदेश में पाई गई हैं, उन सभीके निम्न भागमें ५ से अधिक भक्तोंकी आकृतियाँ मिली हैं। अंबिकाकी गोदमें यों तो दो बच्चे होने चाहिए, परन्तु कहीं-कहीं एक बच्चेवाली मूर्ति भी उपलब्ध हुई है। - अतः इसे मैं निश्चित ही अंबिकाकी मूर्ति मानता हूँ। इसका रचनाकाल १२ वीं एवं १३वीं शतीके मध्यकालका होना चाहिए। इन्हीं दिनों महाकोसल में जैनसंस्कृतिके अनुयायियोंका प्राबल्य था। अंबिकाकी विभिन्न मूर्तियाँ भी इसी शताब्दीमें निर्मित हुई। Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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