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________________ २०६ खण्डहरोंका वभव कलाकारने इन नागकन्याओंके ऊपर दो गजोंका निर्माण किया है। दोनों गजोंकी शुण्डाएँ आगेकी ओर उठ-उठकर आपसमें अपने आसरे छत्र सँभाले हुए हैं । उस छत्रकी स्थिति जिनमूर्तिके शिरोभागके बिलकुल ऊपर है । प्रधान मूर्तिपर एक चौकी विराजमान है । चौकीके ऊपर, जैसा अन्यत्र सभी जगह देख पड़ेगा, एक चादरका मुख्य अंश जमा हुआ है, उस प्रकारकी पद्धतिका विकास महाकोसल एवं सन्निकटवर्ती प्रतिमाओंकी अपनी विशेषता है । चौकीके निम्न भागमें उभय ओर मंगल मुख बने हैं। सभी जैन मूर्तियोंमें ये मंगलमुख बने रहते हैं । प्रधान मूर्तिके दायें-बायें अधिष्ठाता-अधिष्ठात्री अङ्कित हैं। अंकन इतना अस्पष्ट और कला-विहीन है कि निश्चित रूपसे नहीं कहा जा सकता कि ये किस तीर्थकरसे सम्बन्धित हैं। कलाकारने इन दोनोंके वाहन और आयुध स्पष्ट नहीं किये हैं। जिनसे कि उनका निश्चय करने में सहायता मिले। - प्रतिमाके मस्तकपर भी एक Arch महराबमें जिनमूर्ति उत्कीर्णित है। इसके पीछे सम्पूर्ण शिखरका स्मरण दिलानेकी आकृतियाँ उत्कीर्णित हैं। आमलक, अण्डा और कलशतक स्पष्ट हैं । कहनेका तात्पर्यकी तोरणकी मध्यभाग वाली मूर्ति ऊपरकी एक आकृतिको मिलाकर एक मन्दिरके रूपमें दिखलाई पड़ती है। इस शिखरके ऊपर भी कुछ आकृति अवश्य जान पड़ती है, परन्तु खंडित होनेसे निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि किसका प्रतीक होगा ? अनुमानतः वह ध्वजका चिह्न होना चाहिए । तोरण में और भी त्रिगड़ा एवं एक अष्टप्रतिहारी, मूर्तियाँ हैं । कलाकी दृष्टिसे उनका विशेष महत्व नहीं, अतः स्वतन्त्र उल्लेख अनावश्यक है। इस तोरणका महत्त्व केवल धार्मिक दृष्टिमात्रसे नहीं। इसमें जो विभिन्न अलंकरण, डिजाइन तथा सुरुचिपूर्ण बेल-बूटे कढ़े हुए हैं; वे अत्यन्त सुन्दर और कलापूर्ण हैं । इसमें रेखागणितकी किन्हीं रेखाओंकी छटा भी खिंच आई है । तोरणके मध्य भागमें एक बालक मकरारूढ़ है । मकर और आरोहीकी मुखाकृति बड़ी सुघड़ है। अन्य अलंकरणोंमें मगध शैलीके Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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