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________________ महाकोसल मध्य-प्रदेशका एक विभाग है। इसमें हिन्दी-भाषी जिले ' सम्मिलित हैं। छत्तीसगढ़ डिवीजनका समावेश भी इसीके अन्तर्गत है। मध्य प्रदेशके प्राचीन इतिहासकी दृष्टि से महाकोसलका विशेष महत्व है, सापेक्षतः प्राचीन ऐतिहासिक घटनाएँ निर्दिष्ट भू-भागपर ही घटी हैं । एतद्विषयक ऐतिहासिक साधन इसी भू-भागसे प्राप्त हुए हैं । आज भी महाकोसलके वन एवं गिरिकन्दरा तथा खण्डहरों में, भारतीय शिल्पस्थापत्य एवं मूर्तिकलाके मुखको उज्ज्वल करनेवाली व इनके क्रमिक विकासपर कलाकी दृष्टिसे-प्रकाश डालनेवाली मौलिक कलाकृतियाँ प्रचुर परिमाणमें उपलब्ध होती ही रहती हैं। मुझे विशेष रूपसे यहाँकी मूर्तिकलाका अध्ययन करनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ है । मैं इस निष्कर्षपर पहुँचा हूँ, जब १२वीं शताब्दीमें अन्य प्रान्तोंके कलाकार मूर्तिनिर्माणमें शिथिल पड़ गये थे, उन दिनों यहाँ के कलाकार अपनी शिल्प-साधनामें पूर्णतः अनुरक्त थे । ____ अन्य प्रान्तोंकी अपेक्षा महाकोसलमें शिल्पकलाकी दृष्टिसे अनुसन्धान कार्य बहुत ही कम हुआ है। जो हुआ है वह यहींके बराबर है । जनरल कग्निहाम और राखालदास बनर्जी आदि पुरातत्त्वविदोंने अवश्य ही प्रमुख स्थानोंका निरीक्षण कर इतिवृत्तकी खानापूर्ति की है। परन्तु जितने खानोंका विवरण प्रकाशित किया गया है, उनसे भी अधिक महत्त्वपूर्ण स्थान एवं अवशेष आज भी उपेक्षित पड़े हुए हैं, जिनकी ओर केन्द्रीय पुरातत्त्वविभाग एवं प्रान्तीय शासनने आजतक ध्यान नहीं दिया; न देनेवाले सांस्कृतिक कार्यकर्ताओंको प्रोत्साहित ही किया, बल्कि तथाकथित व्यक्तियोंके प्रति अभद्र व्यवहार किया गया । उचित अनुसन्धानके अभावमें महत्त्वपूर्ण 'आर्कियोलाजिकल सर्वे आफ् इंडिया, पुस्तक १७ । 'हैहयाज ऑफ त्रिपुरी एण्ड देअर मान्यूमेण्ट्स । Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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