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________________ १८२ खण्डहरोंका वैभव प्रायः चार बजे पुनः मैं और बिहारीलाल अहोर तपसीताल पहुंचे। उपर्युक्त पंक्तियोंमें मैंने पहाड़ीपर चढ़नेके दो मार्गोका उल्लेख किया है। घने जंगल एवं टेढ़ी-मेढ़ी चट्टानोंवाला एक मार्ग तपसीतालसे फूटता है । आगे चलकर जंगलोंमें विभाजित हो जाता है । समय अधिक हो जाने के कारण हम डेढ़ मीलसे अधिक आगे न जा सके, पर जितना मार्ग तय किया, उस बीच मुझे दर्जनों गढ़े-गढ़ाये पत्थर, आकृतियाँ खचित स्तम्भ, मूर्ति अवशेष व कहीं-कहीं भूमिस्थ डेढ़ फीटसे अधिक लम्बी ईट दिखलाई पड़ी; यद्यपि यहाँ जैन-अवशेष तो दिखाई नहीं पड़े, परन्तु इतना निश्चित ज्ञात हुआ कि किसी समय इस पहाड़ीमें विस्तृत जनावास व देवमंदिरोंका समूह रहा होगा। उपर्युक्त पंक्तियों में मैंने एक कामकी किंवदन्तीका सूचन किया है, वह इस प्रकार है । कहा जाता है कि इस पहाड़ीपर किसी समय बड़ा दुर्ग था; एवं उसमें कामकन्दला नामक एक विख्यात गणिका रहती थी; यहींपर माधवानल के साथ उसकी प्रथम भेंट हुई थी। पंडेसे यह ज्ञात हुआ कि यह गणिका माधवानलकी पुनः-प्राप्तिके लिए नग्न मूर्तियोंका पूजन करती थी। उसीने उपर्युक्त दोनों मूर्तियोंका निर्माण करवाया। इस किंवदन्तीमें विशेष तथ्य तो मालूम नहीं पड़ता, कारण कि उपर्युक्त पंक्तियोंका आंशिक समर्थन भी साहित्य एवं अन्य ऐतिहासिक साधनोंसे नहीं होता, बल्कि स्पष्ट कहा जाय तो डोंगरगढ़के भूभागपर प्रकाश डालनेवाले साधन ही अंधकार के गर्भ में हैं । दूसरी बात यह भी है कि जबलपुर जिलेके बिलहरी ग्राममें एक शैव-मंदिरका खंडहर मैंने देखा है, उसके साथ भी कामकन्दलाका सम्बन्ध जुड़ा हुआ है । लोग मानते हैं कि वह उसका महल है । माधवानलकामकन्दलाके आख्यानोंमें शैव-मंदिरका उल्लेख पुनः पुनः आया है । छत्तीसगढ़में भी यह आख्यान बड़ा प्रसिद्ध रहा है; जहाँ पुरातन शैवमंदिर दिखें, वहाँ कामकन्दलाके सम्बन्धकी कल्पना निरर्थक है । किंवदन्तीमें वर्णित नग्न मूर्तिके स्थानपर शिवलिंग Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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