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________________ खण्डहरोंका वैभव भूभाग कितना आच्छादित रहा होगा, इसकी कल्पना प्रत्यक्षदर्शी कलाकार ही कर सकता है । प्रकृति के अवशेष स्वरूप आंशिक सौन्दर्य आज भी यहाँ सुरक्षित हैं। कलाकारके मनका न केवल उन्नयन होता है, अपितु महत्त्वपूर्ण उदात्त भावनाका सूत्रपात भी होता है । अग्रसोची शासकोंने भले ही इसे सुरक्षा की दृष्टि से बसाया हो, पर आज यह संस्कृति और सौन्दर्यकी साधनाके केन्द्रस्थानके रूपमें प्रसिद्ध है । लाखों जनपदोंकी हार्दिक भावनाका यह केन्द्र स्थान है । यहाँ शाक्त और वैष्णवोंका किसी समय अवश्य ही समन्वयात्मक अस्तित्व रहा होगा । पहाड़ीके ऊपर बमलाईका शक्तिपीठ है, तो ठीक उसके पीछे के नगमूलमें वैष्णव साधनाका स्थान बना हुआ है, परन्तु बहुत कम लोग जानते हैं कि यहाँपर किसी समय श्रमण परम्परा में विश्वास करनेवालोंका भी साधनास्थान था, जैसा कि तत्रस्थित विशृंखलित अवशेषोंसे फलित होता है । १७८ यों तो मुझे उन्नीस सौ तैंतालिस और उन्नीस सौ इक्कावनमें डोंगरगढ़में विहार करते हुए ठहरनेका अवसर मिला था । इच्छा रहते हुए भी पहाड़ी पर न जा सका, एवं न वहाँके अवशेषोंका ही पता लगा सका; बल्कि मुझे ज्ञात ही न था कि बमलाई देवीको छोड़कर और किसी दृष्टिसे डोंगरगढ़का सांस्कृतिक व ऐतिहासिक महत्त्व भी है । जैन- अवशेष I २३ मार्च १६५२को अपनी शोधविषयक आवश्यक सामग्री के साथ पहाड़ी पर चढ़ा; यों तो ऊपर जानेके दो मार्ग हैं - एक तपसीतालसे एवं दूसरा श्मशान घाट | हमारे लिए दूसरा मार्ग ही उपयुक्त था । पहाड़ीपर चढ़ते हुए मार्ग में कहीं-कहीं अवशेष दिखलाई पड़े | उनमें से कुछ एक जैनपरम्परासे सम्बद्धित भी ज्ञात हुए, जिनका उल्लेख मैं आगे करूँगा | पहाड़ी से नीचे उतरनेपर मेरा इरादा तो यही था कि अभी तो निवासस्थानपर चलकर कुछ विश्राम किया जाय; क्योंकि पहाड़ी - Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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