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________________ वैभवकी झांकी टूटे-फूटे खंडहर भी सम्पदा और वैभव हैं, इस बातको हमने जितनी बार सुना है, उतनी बार समझा नहीं। समझा इसलिए नहीं कि बिना समझे काम चल रहा है । देशके सामने और कितने ही बड़े काम हैं। 'व्यक्तिके सामने और कितनी ही जिम्मेदारियाँ हैं । पंचवर्षीय योजनाओंके द्वारा हम नये निर्माणका स्वप्न देख रहे हैं—वह निर्माण जो हमारे देशके ३५ करोड़ आदमियोंको खाना देगा, कपड़ा देगा, नये मकान देगा। जीवनका स्तर ऊँचा होगा। लोगोंको सुख-सुविधा मिलेगी। राष्ट्रके पास सम्पत्ति होगी। हमारी राष्ट्रिय शक्तिका विस्तार होगा और निश्चय रूपसे हमारी घाक मानेंगे—अम्रीका, ब्रिटेन, रूस, चीन......। वैभवकी इस परिभाषा और इस रूपके सामने खंडहरोंकी बात सोचना, या न सोचने पर आश्चर्य करना ही आश्चर्य है। लेकिन, श्री मुनि कान्तिसागरजी जैसे धुनी और स्वप्नद्रष्टा भी हमारे बीचमें हैं जो 'वैभव'के दूसरे गरिमावान रूपको दिखानेके लिए हमें खंडहरोंके बीच ले जानेपर कटिबद्ध हैं। खंडहरोंका वैभव हमारा सांस्कृतिक वैभव है। यह हमारा ऐसा उत्तराधिकार है, जिसका मूल्य सोने-चाँदीमें नहीं अांका जा सकता। यह मूल्य जीवनके आर्थिक स्तरका मूल्य नहीं है, यह है जीवनके आदर्शोका मूल्य । निःसन्देह, हमारी पंचवर्षीय योजनाएँ अपनी जगह आवश्यक हैं, किन्तु इन योजनाओंको बनानेवाले व्यक्तियोंने 'ही राज्यचिह्नके लिए धर्मचक्रकी और राज्य-प्रेरणाके लिए 'सत्यमेव जयते' की प्रतिष्ठा की है। जो धर्मचक्र राज्यकी पताकापर अंकित है और जो शब्दावलि राज्यकी मोहरको आहत करती है, वह यदि 'वैभव'का मूर्त रूप नहीं तो और क्या हो सकता है ? Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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