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________________ मध्यप्रदेशका जैन-पुरातत्व पुष्पदन्त एक ही व्यक्ति माने जाते हैं। एतदर्थ प्रबल व पुष्ट प्रमाण अपेक्षित हैं। ' यहाँ के बालाजीके नवीन मन्दिरके सामने रामा पटेलके खेतमें कुछ पुरातन भग्नावशेष हैं, जिनमें एक पद्मासनस्थ, ३ फीट ऊँची प्रतिमा भी है। सौभाग्यसे यह अखंडित है। कलाकी दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण न होते हुए भी, वहाँ जैनधर्मके अस्तित्वकी दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण है। पार्श्ववर्ती पुरातन स्तूपाकार कतिपय स्तम्भोंपर भी जैनप्रतिमाएँ खुदी हुई हैं। कुम्भकलश, नन्द्यावर्त आदि चिह्नोंसे विदित होता है कि निस्सन्देह तथाकथित सभी अवशेष जैनमन्दिरके ही हैं। तन्निकटवती शैव मन्दिर में अम्बिका, चक्रेश्वरी आदि जैनदेवियोंकी प्रतिमाएँ बहुत ही सुन्दर, किन्तु अत्यन्त अरक्षित अवस्था में विद्यमान हैं । इनकी रचना-शैलीसे जान पड़ता है कि वे बारहवीं शदीके अवशेष हैं । नगरके दक्षिण और पश्चिमकी ओर कुछ जैन-मूर्तियोंके अवशेष दृष्टिगोचर होते हैं । इनका खण्डन साम्प्रदायिक विद्वेषजनित वृत्तिसे प्रेरित हुआ है। मेरे सम्मुख ही एक सन्यासीने, जो वहाँके बालाजीके मन्दिर में रहते थे और मुझे पुरातनावशेष बतानेके लिए मेरे साथ चले थे, लहसे दक्षिणकी खड्गासन जैनप्रतिमाके मस्तकको धड़से अलग कर, प्रसन्न हुए । यहाँपर मुझे अनुभव हुआ कि मूर्ति-भंजन या पुरातन आर्य-कला-कृतियोंके खण्डित होनेकी कल्पना जब हम करते हैं; प्रमाणित कर जैनधर्मकी महती उदारताका परिचय दिया है। अन्य स्तुति, स्तोत्रोंकी भाँतिमहिम्न स्तोत्रकी पादपूर्ति जैनाचार्यों ने विभिन्न प्रकार करके भारतीय पादपूर्ति विषयक साहित्यमें अभिवृद्धि की है। साथ ही ऋषभदेव महिम्न' और महावीर महिम्न स्तोत्रोंकी स्वतन्त्र रचना कर उनपर वृत्तियाँ भी निर्मित कर, मानव हृदयको भक्तिसिक्त बनानेका प्रयास किया है। इन टीकाओंमें अञ्चलगच्छीय श्री ऋषिवर्द्धनसूरि निर्मित टीका अत्यन्त मूल्यवान् है, इसकी सुन्दर प्रति जर्मनस्थित बर्लिन विश्वविद्यालयमें सुरक्षित थी। Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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