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________________ खण्डहरोंका वैभव का सफलता पूर्वक खनन हुआ । तदनन्तर ह्विलर डाइरेक्टर जनरल हुए और भी श्रीमाधवस्वरूपजी वत्स हैं । १४४ पुरातत्त्व विभागकी संक्षिप्त कार्यवाही, जैन अन्वेषणका मार्ग सरल बना देती है । पुरातत्त्व विभागीय रिपोर्टों के अतिरिक्त रायल एशियाटिक सोसायटी लंदन और बंगालके जर्नल्स 'रूपम', इंडियन आर्ट ऐंड इण्डस्ट्री, सोसायटी आफ दि इंडियन ओरियेंटल आर्ट, बंबई यूनिवर्सिटी, जर्नल आफ दि अमेरिकन सोसायटी आफ दि आर्ट, भांडारकर ओरियंटल रिसर्च इन्स्टिट्यूट, इंडियन कल्चर आदि जर्नल्स भारतीय विद्या श्री जैनसत्य प्रकाश, जैनसाहित्य संशोधक, जैन ऐंटीक्वेरी, जैनिज्म इन नोदर्न इंडिया एवम् खोज विषयक समितियोंके जर्नल्स श्रादिमें जैन इतिहास व पुरातत्वकी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सामग्री सुरक्षित है । केवल उपर्युक्त विवेचनात्मक विवरणोंके आधारपर जैन - पुरातत्त्व के इतिहासकी भूमिका तैयार की जा सकती है । जिस प्रकार गजेटियरों के आधारसे प्राचीन जैन - स्मारककी सृष्टि हुई, तो क्या इतनी विपुल सामग्रीसे कुछ ग्रन्थ तैयार नहीं हो सकते ? अवश्य हो सकते हैं । स्व० नाथालाल छगनलाल शाहने जैन- गुफापर इस दृष्टिसे कार्य किया था, पर काल में ही काल द्वारा कवलित हो गये । साथ ही एक बातकी सूचना दूँगा कि यदि इन साधनों के आधारपर ही जैन- पुरातत्त्व के अतीतको मूर्तरूप देना है तो, पूर्व गवेषित स्थान व निर्दिष्ट कला कृतियोंका पुनः निरीक्षण वांछनीय है । कारण कि जिन दिनों कथित अवशेषोंकी गवेषणा हुई, उन दिनों, अपेक्षित ज्ञानकी अपूर्णता के कारण, उनके प्रति न्याय नहीं हुआ । जिन सामग्रियोंको गवेषकोंने बौद्ध घोषित किया था, वे आगे चलकर जैन प्रमाणित हुई । प्रसंगतः जैनशिल्प व मूर्तिकला आदि ऐतिहासिक १ 'आजके युग में जब कि सभी साधन प्राप्त हैं तो भी विद्वान् लोग प्रमाद कर बैठते हैं तो उन लोगोंकी तो बात ही क्या कही जाय । Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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