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________________ १४२ खण्डहरोंका वैभव विवरण थे । पुरातन अवशेषके अतिरिक्त आपने भूगोल व मुद्राओंपर प्रामाणिक और विवेचनात्मक ग्रन्थ लिखे । एंश्यंट जिओग्राफी ऑफ इण्डिया और ४ जिल्द सिक्कोंपर प्रकट हो चुकी हैं। मथुराके जैन-अवशेषोंकी खुदाई श्राप व आपके सहयोगी डा० फुहरर द्वारा सम्पन्न हुई और स्मिथ द्वारा मूल्यांकन हुअा। जब सन् १८८६ में वे अवकाशपर गये तब विभागका पूरा भार डा० बर्जसके कन्धों पर आ पड़ा । अब यह कार्य इतना व्यापक हो चुका था कि समुचित संचालनार्थ पाँच भागोंमें विभाजित करना पड़ा। डा० बर्जेसने जैनपुरातत्त्वपर भी पर्याप्त प्रकाश डाला है | कनिंघमकी अपेक्षा आपने इस सम्बन्धमें भूलें कम की। ___ अब सरकारकी इच्छा नहीं थी कि यह विभाग अधिक दिन चलाया जाय । डा० बर्जेसके हटने के बाद एक कमिशन इसके हिसाब जाँचनेके लिए बैठाया गया, कमिशनने कम व्यय करनेकी सिफारिश की । पाँच वर्ष बड़ी दीनतापूर्वक बीते । पर लार्ड कर्जनने पुनः इसमें प्राण संचार किया। और १ लाख रुपया वार्षिक देना स्वीकार किया, अब डाइरेक्टर जनरल के श्रासनपर सर जोन मार्शल आये। १६०२से एक प्रकारसे भारतीय पुरातत्त्वके अन्वेषणमें नया युग प्रारम्भ हुआ, कार्यको गति मिली। ___सर जॉन मार्शलने पूर्व गवेषित पुरातन स्थानोंका पर्यटन किया और उनकी तात्कालिक स्थितियोंका अध्ययन किया, जहाँ नवीन अवशेष निकलनेको सम्भावना थी, वहाँपर खनन कार्य प्रारम्भ हुआ। तदनन्तर मेगेस्थनीज़ और चीनी पर्यटकोंके विवरणके आधारपर निर्मित कनिंघम साहबकी भूगोलपरसे जैन व बौद्ध तीर्थोंका अनुसन्धान हुआ। राजगृह, मथुरा, सारनाथ, मिरखासपुर, भीटा, खाशिया, आदि नगरोंका अन्वेषण हुआ । वैशाली भी अभी हो प्रकाश में आई । १६२४ तक नालन्दा, अमरावती, तक्षशिला आदि पुरातन नगरोंका ऐतिहासिक महत्त्व समझा गया । तक्षशिलाके जैनस्तूपोंको या मन्दिरोंको प्रकाशमें लानेका श्रेय सर जॉन Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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