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________________ जैन-पुरातत्त्व १३७ तहलका मचा दिया था। सन् १७८४ में एशियाटिक सोसायटीकी, इनके सद् प्रयत्ननोंसे स्थापना हुई। इसमें चीन, ईरान, जापान, अरबस्तान और भारतके साहित्य, स्थापत्य, धर्म, समाज और विज्ञान आदि विषयोंपर प्रकाश डालनेवाले महत्त्वपूर्ण ग्रन्थोंका संकलन कर, नवस्थापित सोसायटीके सदस्योंको उन विषयों के अध्ययनके लिए प्रेरित किया। दश वर्षों का अध्ययन समितिके मुखपत्र एशियाटिक रिसर्चेसके १७८८-१७६७ तकके प्रकाशित ५ भागोंमें सुरक्षित है। इस कालमें चार्ल्स विल्किन्सने बहुत मदद दी थी। इसीने प्रथम देवनागरी और बँगलाके टाइप बनाये। ____सन् १७६४ में सर विलियम जॉन्सके अवसान के बाद हेनरी कॉलबकने बागडोर सम्हाली। इसने भारत के माप, समाजविज्ञान, धार्मिक परम्परा, भाषा, छन्द आदि विषयोंपर प्रकाश डालकर, यूरोपीय विद्वानोंका ध्यान, भारतीय विद्यापर आकृष्ट किया, जब वे लन्दन गये, तब वहाँ भी आपने अपनी ज्ञानोपासना जारी रखी और "रायल एशियाटिक सोसायटी" की स्थापना की। इसने जैनधर्मपर भी निबन्ध लिखा, जो भ्रामक था। ___ सन् १८०७ में मार्किवस वेलस्लि बंगाल में उच्चपदपर नियुक्त हुए, वहाँपर आपने दिनाजपुर, गोरखपुर, शाहाबाद, भागलपुर, पूर्णिया, रंगपुर आदिपर गबेषणा कर, नवीन तथ्य प्रकाशित किये। ___ पश्चिमीय भारतकी केनेरी व श्रोरिसाकी हाथी गुफाओंका वर्णन "बोम्बे ट्रान्जेक्शन" में, क्रमशः साल्ट व रसकिन द्वारा लिखित प्रकाशित हुए । दक्षिण भारतपर 'टामस डनियल' ने कार्य प्रारंभ किया, उसी समय वहाँ कर्नल मेकेन्जीने पुरातत्त्वका अध्ययन शुरू किया। ये केवल ग्रंथ व लेखोंके संग्राहक ही न थे, पर अध्ययनशील पुरुष थे । अभीतक लेख संग्रहीत तो हुए, पर लिपिविषयक ज्ञान अत्यन्त सीमित था । भारतीय पुरातत्त्वान्वेषणके महत्त्वपूर्ण अध्यायका प्रारंभ १८३७ ईस्वी में हुआ। इस बीच राजस्थान व सौराष्ट्रमें (सन् १८१८-१८२३ ) कर्नल जेम्स टाडने कुछ लेखोंका पता लगाया, जो खरतरगच्छके यशस्वी यति १० Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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