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________________ जैन-पुरातत्व पश्चिम भारतकी अोर पाये जानेवाले लेख देवनागरीमें हैं । इनकी संख्या इतनी विस्तृत है कि कई भागोंमें प्रकाशित किये जा सकते हैं। मध्यकालमें चापोत्कट, चौलुक्य और वाघेलाके राज्यमें जैनोंका स्थान बहुत ऊँचा था। राजा भी जैनधर्मको अादरकी दृष्टि से देखते थे । जैसलमेर,' राजगृह, शत्रुजय, राणकपुर गिरनार, हथूड़ी, आबू, देवगढ़, आदि स्थानोंपर मूल्यवान् शिलालिपियाँ मिलती हैं। इनमेंसे वहुतोंका प्रकाशन एपिग्राफिया इंडिका तथा इंडियन एण्टीक्वेरी' तथा पुरातत्त्व विभागकी वार्षिक कार्यवाही एवं "प्राचीन लेखमाला" हिस्टोरिकल इन्स्क्रिपशन्स आफ गुजरात भा० १, २, ३में छपे हैं । इनके अतिरिक्त बाबू पूर्णचन्द्रजी नाहर, राजस्थान पुरातत्त्व विभागके डाइरेक्टर जैन-लेख-संग्रह-जैसलमेर भा० ३। २"महत्तियाण वंश प्रशस्ति । ई० स० १८८८-८६ में पुरातत्त्व विभागने यहाँ के लेख लिये थे, उनमें से कुछेकका प्रकाशन एपिग्राफिया इंडिका भाग २ में हुआ है। आर्कियोलोजिकल सर्वे आफ वेस्टर्न इंडिया १८७-८ । "रिवाइज्ड लीस्ट्स श्राफ एन्टीक्वेरीयन रीमेन्स इन दि बाम्बे प्रेसीडेंसी, वा० ८ और आर्कियोलोजिकल सर्वे आफ वेस्टर्न इंडिया वा० २। ६ एपिग्राफिया इडिका वा० । एपिग्राफिया इंडिका वा०८ और "कलेक्शन आफ प्राकृत एंड संस्कृत इंस्क्रिप्शन्स" तथा "एशियाटिक रिसचोर्ज" वा० १६ “अबूंदाचल जैन लेख संग्रह”। देवगढ़में जैन-पुरातन-अवशेषोंकी प्रचुरता है । यहाँ के२००से ऊपर लेख भारतीय पुरातत्त्व विभागने लिये हैं। जैन-लेख-संग्रह भा० १-२-३ । Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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