SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ __ जैन-पुरातत्त्व यहाँपर तीन ब्राह्मण गुफाओंके साथ पूर्वकी ओर एक जैन-गुफा भी है। निर्माण-काल ६५० ईस्वी होना चाहिए। कारण कि पूर्व निर्मित गुफाओंमें सापेक्षतः आंशिक पार्थक्य है। इसकी पड़शाला ३१ x १६ फुट है । गुफा १६ फुट गहरी है। इसके स्तम्भ एलीफंटाके समान हैं। भगवान्को मूर्ति पन्नासनमें है। बरामदेमें चार नाग, गौतमस्वामी तथा पार्श्वनाथ स्वामीकी मूर्ति है । दीवाल एवं स्तम्भोंपर भी तीर्थकर-आकृति है। पूर्वाभिमुख द्वारके पास भगवान् महावीरकी पल्यंकासनस्थ प्रतिमा है। श्रमणहिल' ___ मदुरा तामिलका महत्त्वपूर्ण नगर रहा है । राजनैतिक और साहित्यिकउभय दृष्टिसे इसका स्थान ऊँचा था। यहाँपर साहित्यिकोंकी परिषद् हुआ करती थी। यहाँपर भी जैनसंस्कृतिकी गौरव-गरिमामें अभिबृद्धि करनेवाली कलात्मक सामग्री प्रचुर परिमाणमें विद्यमान है। श्रीयुत टी० एस० श्रीपाल नामक एक सजनने अभी-अभी वहाँसे ७ मीलकी दूरीपर पहाड़ियोंमें खुदी हुई जैन-प्रतिमाएँ एवं दशवीं शतीके लेखोंका पता लगाया है । समरनाथ और अमरनाथ पहाड़ियोंमें उन्हें आकस्मिक जानेका सौभाग्य प्राप्त हुआ और वहाँ जैनप्रतिमाएं मिलीं। ज्यों-ज्यों आगे जाते गये, त्यों-त्यों सफल होते गये। एक गुफा भी इन पहाड़ियोंमें मिली, जिसमें जैन तीर्थंकरको मूर्तियाँ खचित हैं, यक्षोंकी आकृतियों के साथ कुछ ऐसे भी चिह्न मिले हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि वहाँपर श्रमणोंका वास था। मेरे मित्र डाक्टर बहादुरचन्द छावड़ा (भारत सरकारके प्रधान लिपिवाचक-चीफ एपिग्राफिस्ट) ने तो इस स्थानको जैनसंस्कृतिका केन्द्र बताया है। . 'आर्कियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया रिपोर्ट, भा० १, पृ० २५ । यहाँ श्रमणोंकी समाधियाँ भी पर्याप्त है। 3"हिन्दू" (मद्रास) १५-७-१६४६ । Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy