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________________ ( १५४ ) बोध मानना समुचित नहीं है तो उस दशा में "एकत्र द्वयम् " की रीति से उत्पत्ति आदि तीनों धर्मो का एक आश्रय में युगपत् अन्वय मानना श्रेयस्कर होगा । अर्थात् द्रव्य पद से होने वाले बोध में उत्पत्ति, विनाश और ध्रौव्यगत तीन प्रकारताव्रों से निरूपित आश्रयगत एक विशेष्यता का अङ्गीकार उचित होगा। निष्कर्ष यह है कि द्रव्य पद से आश्रयत्रय की विवक्षा न होने के. कारण आश्रयश्रय की दृष्टि से भी द्रव्य पद को नित्य बहुवचनान्त नहीं माना जा सकता । महेश्वरपदं न विभिन्नवाच्यं सर्वज्ञनादिदिया परेषाम् । द्रव्यध्वनिस्तव तथैव परं पदार्थ 7: वाक्यार्थ भावभजना न परैः प्रदृष्टा ॥ ६७ ॥ * इस श्लोक से उदाहरण द्वारा इस बात की पुष्टि की गई है कि उत्पत्ति आदि तीन धर्मों के प्रवृत्तिनिमित्त होने पर भी द्रव्य पद नानार्थक और नित्य बहुवचनान्त नहीं हो सकता । नैयायिकों ने महेश्वर शब्द के छः प्रवृत्तिनिमित्त माने हैं । सर्वज्ञता तृप्तिरनादिबोधः स्वन्तत्रा नित्य मलुप्त शक्ति' । अनन्तशक्तिश्च विभोविधिज्ञाः षडाहुरङ्गानि महेश्वरस्य ॥ तात्पर्य यह है कि महेश्वर शब्द से सर्वज्ञता समस्त पदार्थों का सभी सम्भव प्रकारों से यथार्थज्ञान, तृप्ति - अपने सुख को इच्छा का न होना, अनादिबोध; नित्यज्ञान, स्वतन्त्रता - जगत्कर्तृत्व, नित्यम् अलुप्तशक्तिः:- कभी भी नष्ट न होने वाली शक्ति अर्थात् नित्य इच्छा और नित्य प्रयत्न तथा अनन्तशक्ति - अपरिमित कारणता से युक्त एक ईश्वर का बोध होता है। तो जिस प्रकार महेश्वर शब्द और नित्य बहुवचनान्त न होने पर भी सर्वज्ञता आदि छः धमों के एक आश्रय का बोधक होता है उसी प्रकार नानार्थक और नित्य बहुवचनान्त ने होने पर भी द्रव्य पद भी उत्पत्ति, विनाश और ध्रौव्य के एक आश्रय का बोधक हो सकता है, और इसी लिये नैयायिक, जिन्हें स्याद्वाद का सुपरिचय नहीं है, भले स्वीकार न करें, पर जैन विद्वानों ने जिन्हें स्याद्वाद का मर्म पूर्णतया अवगत है, द्रव्य शब्द में एक ही साथ पदभाव और वाक्यभाव दोनों बातों की कल्पना की है अर्थात् उन्होंने यह स्वीकार किया है कि उत्पत्ति आदि अनेक Aho ! Shrutgyanam
SR No.034199
Book TitleJain Nyaya Khanda Khadyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay, Badrinath Shukla
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1966
Total Pages200
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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