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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. । ( ५३ ) सांभर नमक-हलका, वातनाशक, अत्यन्त उष्ण, दस्तावर, पित्तवर्धक, तीक्ष्ण, उष्णा, सूक्ष्म, अभिष्यन्दी और कटुपाकी है । यह सांभरलवण नाम से प्रसिद्ध है ॥ २४२ ॥ सामुद्रम् । सामुद्रं यत्तु लवणमक्षीवं वशिरं च तत् ॥ २४३ ॥ सामुद्रं वै सागरजं लवणोदधिसंभवम् । सामुद्रं मधुरं पाके सतिक्तं मधुरं गुरु ॥ २४४ ॥ नात्युष्णं दीपनं भेदि सक्षारमविदाहि च । श्लेष्मलं वातनुत्तितम रूक्षं नातिशीतलम् ॥ २४५ ॥ समुद्रलवण, अक्षीव, वशिर सामुद्रज, सागरज, उदधिसम्भव यह समुद्रलवणके नाम हैं। सामुद्र नमक- पाक में मधुर, किंचित तिक्त, मधुर, भारी, किश्चित् उष्ण, दीपन, भेदनकर्त्ता, क्षारयुक्त, अविदाही, कफकारक, वातनाशक, विक, स्निग्ध और किंचित शीतल है ।। २४३-२४५ ॥ विडम् | विडं पाक्यं च कतकं तथा द्राविडमासुरम् । विडं सक्षारमूर्द्धाधिः ककवातानुलोमनम् ॥ २४६ ॥ (ऊर्ध्वं कफमधो वातं संचारयेदित्यर्थः । ) दीपनं लघु तीक्ष्णोष्णं सूक्ष्मं रुच्यं व्यवयायि च विबंधानाह विष्टंभोदर्द गौरवलनुत् ॥ २४७ ॥ 1 विड, पाक्य, कतक, द्राविड और आतुर यह विड़ नमकके नाम हैं विनमक क्षारयुक्त है । ऊपर और नीचे के मार्गों से कफ और बायुके अतुलोमन करनेवाला है अर्थात ऊर्ध्व मार्गले कफ और अधो मार्गसे पवनको अनुलोमन करके निकालता है | Aasahasrर्ता, हलका
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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