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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. डी. । (४५) दारूहरदी में हल्दी के समान ही सब गुण हैं किन्तु नेत्र कान और सुखके रोगोंको विशेष रूपसे दूर करती है । २०२-२०४ ॥ रसांजनम् । दावकासमं क्षीरं पादं पक्त्वा यदा घनम् । तदा रसांजनं ख्यातं नेत्रयोः परमं हितम् ॥ २०५ ॥ रसांजनं तार्क्ष्यशैलं रसगर्भ च तार्क्ष्यजम् । रसांजनं कटुश्लेष्म विषनेत्रविकारनुत् ॥ २०६ ॥ उष्णं रसायनं तिक्तं छेदनं व्रणदोषहृत् । दारूहल्दी के अष्टावशेष क्वाथमें चौथा हिस्सा गोदुग्ध मिलाकर पकाचे जब वह अफीम के समान गाढा हो जाय तो इसको रसाअन या रसोत कहते हैं । यह नेत्रोंके लिये परम हितकारी है । रसाञ्जन, तार्यशैल, रसगर्भ, ताज, यह रसौतके संस्कृत नाम हैं । रसौत - कटु है, कफ, विष और नेत्ररोगोंको हरती है, उष्ण है, रसायन : है, तिक्त है, छेदन है औौर व्रण दोषोंको हरनेवाली है || २०५ ॥ २०६ ॥ वाकुची । अवल्गुजा वाकुची स्यात्सोमराजी सुपर्णिका २०७ शशिलेखा कृष्णफला सोमा पूतिफलीति च । सोमवल्ली कालमेषी कुष्ठघ्नी च प्रकीर्तिता ॥ २०८ ॥ वाकुची मधुरा तिक्ता कटुपाका रसायनी । विष्टभहृद्धिमा रुच्या सरा श्लेष्मास्रपित्तनुत् ॥ २०९ H रूक्षा द्या श्वासकुष्ठमेहज्वरकृमिप्रणुत ।
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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