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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. 1 (२३) हिंगुष्णं पाचनं रुच्यं तीक्ष्णं वातबलासहृत् ॥ १०० ॥ शूलगुल्मोदरानाइकृमिघ्नं पित्तवर्धनम् । सहस्रवेधि, जतुक, बाह्निक, हिंगु, रामठ यह हींगके संस्कृत नाम हैं । हिंदी में इसे हींग, फारसी में दर्खते भौर अङ्गुजखालिस, अंग्रेजीमें Assaboetida कहते हैं । हींग - गरम, पाचक, रुचिकारक, तीक्ष्ण, पित्तवर्धक तथा वात, कफ, शूल, गुल्म, उदररोग, ग्रानाह और कृमिरोगको दूर करता है ।। १००॥ वचा । वचोग्रगन्धा षड्ग्रंथा गोलोमी शतपर्विका ॥ १०१ ॥ क्षुद्रपत्रीच मङ्गल्या जटिलोग्रा च लोमशा । वचोयगंधा कटुका तिक्तोष्णा वांतिवह्निकृत् ॥ १०२ ॥ विबंधाध्मान शूलघ्नी शकृन्मूत्रविशोधनी । अपस्मारकफोन्मादभूतजन्त्वनिलान् हरेत् ॥१०३॥ वच, उग्रगन्धा, षड्ग्रन्था, गोलोमी, शतपविका, क्षुद्रपत्री, मांगल्या, जटिला, उम्रा और लोमशा यह वचके संस्कृत नाम हैं। हिन्दी में इसे बच फरासी में सोसनजर्द तथा अगर, तुरकी और अंग्रेजी में Sweet Flagroot कहते हैं । * वच - उग्रगन्धवाळी. कटु, तिक्त, गरम, वमन और वह्निको करनेवाली मल मूत्रको शुद्ध करनेवाली तथा मलादिके बन्ध, ग्राम्मान, शूल अपस्मार (मृगी ) कफ, उन्माद, भूत, कृमी और वातका नाश करनेवाली है ।। १०१ ।। १०२ ॥ १०३ ॥ पारसीकवचा । पारसीकवचा शुक्का प्रोक्ता हैमवतीति सा । हैमवत्युदिता तद्वातं हंति विशेषतः ॥ १०४ ॥ पारसीकवचा, शुक्ला और हेमवती इन तीन नामोंसे संस्कृत में खुरासानी
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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