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________________ भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. मरिचम् । मरिचं वेल्लजं कृष्णमूषणं धर्मपत्तनम् । मरिचं कटुकं रूक्ष्णं दीपनं कफवातजित् ॥ ५९॥ उष्णं पित्तकरं तीक्षं श्वासशूलकृमीन हरेत् । तदा मधुरं पाके नात्युष्णं कटुकं गुरु ॥ ६॥ किंचित्तीक्ष्णगुणं श्लेष्मप्रसेकि स्यादपित्तलम् । मरिच, वेल्लज, कृष्ण, ऊषण, धर्मपत्नन यह काली मिरचके नाम हैं इसको हिन्दीमें काली मिरच तथा गोल मिरच, फारसीमें पिलपिल पस्वत्, पौर अंग्रेजीमें Black Pepper कहते हैं। काली मिरच-कटु, तीक्ष्ण, दीपक, कफ और वातको जीतनेवाली उष्णा, पित्तकारक, रूखी तथा श्वास शूल और कृमियोंको नष्ट करतोडे । गोली काली मिरच पाकमें स्वादु, बहुत ऊष्ण नहीं, कटु, भरी, कुछ तीक्ष्ण गुणोंवाली, कफको निकाल देनेवाली और पित्तकारक नहीं है ॥ ५९ ।। ६० ॥ त्रिकटु। विश्वोपकुल्यामरिचत्रयं त्रिकटु कथ्यते ॥ ६१॥ कटुत्रिकं तु त्रिकटु त्र्यूषणं व्योषमुच्यते । त्र्यूषणं दीपनं हंति श्वामकामत्वगामयान् ॥ ६२॥ गुल्ममेहकफस्थौल्यमेदःश्लीपद पीनमान् । सोंठ, पीपल और काली मिरच इन तीनोंको त्रिकटु कहते हैं। कटुत्रिक, विकटु, व्यूष्ण और योष यह त्रिकटु पर्यायवाचक शब्द हैं। त्रिकटु अग्निदीपक तथा श्वास, खांसी, स्वचाके रोग, गुल्म, प्रमेह, कफ, मोटापन,मेदारलीपद और पीनस इन रोगोंको नष्ट करता है ॥६१ ॥ ६२ ॥ पिप्पलीमूलम् । अंथिकं पिप्पलीमूलमूषणं चटकाशिरः ॥ ६३ ॥ EART ६
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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